वृंदावन की कुंज गलियों में मेरी यादें जन्माष्टमी पर्व विशेष

 

हरवंश  (रिटायर्ड प्रिंसिपल, भोपाल म.प्र)

  • "हम छोड़े पाकिस्तान बसने जा रहे हिंदुस्तान,
  • समझ में कुछ नहीं आती है पेश नहीं कुछ भी जाती है 
  • हम छोड़े महल चौबारे अब मिलता नही मकान
  • आगे क्या होगा भगवान, अब कहां जाएं भगवान 
  • जिन्ना तेरा हो जाए सत्यानाश" 

हम लोग शेखुपुरा पाकिस्तान रहते थे 1947 का गदर मैंने देखा मारो मारो चलो चलो चारों और युद्ध की विभीषिका थी मैं बहुत छोटी थी लगभग 3 वर्ष की थी मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था मेरे दादा दादी,मां पिताजी,बहने, भाई कुछ कुछ सामान बटोर रहे थे सबकी आंखों में आंसू थे जब कोई ट्रेन आती तो जानवरों की तरह सब चढ़ने की कोशिश करते जान बचाने के लिए एक दूसरे के ऊपर गिरते चारों ओर शव ही शव दिखाई दे रहे थे छोटे-छोटे बच्चे भूख के कारण मांओं की छाती से लिपटकर रो रहे थे लोग चिल्ला रहे थे पाकिस्तान बन गया.

हिंदुस्तान चलो परिवार बिखरे हुए थे कौन मरा कौन जिंदा कुछ पता नहीं था लड़कियों, औरतों के साथ जो भद्दा व्यवहार किया जा रहा था उसे मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकती मेरी बुआ जी पग फेरे के लिए अपने गांव शेखुपुरा में आई हुई थी मैं छोटी थी चलते-चलते गिर पड़ती कभी दादा जी कभी पिताजी कभी मां कभी बुआ कभी बहन ने मुझे गोद में उठा लेती गिरते पड़ते हम लोग पाकिस्तान के बॉर्डर अमृतसर आए। 

अमृतसर में भारतीयों ने हम शरणार्थियों की बहुत सेवा और मदद की चलते चलते जिन लोगों के पैरों में घाव हो गए थे वहां डाक्टरों ने इलाज किया जो भूखे नंगे थे उनको खाना और कपड़े दिए शरणार्थियों के लिए कैंप लगाए हर प्रकार की सुविधा मुहैया करवाई उसी कैंप में हमारे गांव के कुछ लोग मिल गए वही मेरी बुआ जी के ससुराल वाले भी मिल गए उन्होंने बताया कि बुआ के पति और जेठ जेठानी मार दिए गए हैं। उनका बेटा बच गया जो बुआ के साथ था घर के सब लोग रो रहे थे बुआ तो गिर गिर पड़ रही थी सब लोग दुखी होकर जिन्ना को गालियां दे रहे थे कह रहे थे 

  • "आग लग जाए जिन्ना दी जुबान, जिस झंडा लगाया  पाकिस्तान,
  • पानी विच बह जाए तेरा पाकिस्तान,तू खोल्या झंडा साड्डी शान।" 

हमारे गांव के लोग जो वृंदावन पहुँच चुके थे उन्होंने बताया बृंदावन श्री कृष्ण की जन्मभूमि है और वहां का माहौल हमारे गांव जैसा ही है मतलब सीधे-साधे लोग हैं हमारा परिवार उनके साथ वहा पहुँच गया। वृंदावन को ब्रिज का हृदय कहा जाता है वृंदावन उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में स्थित एक महत्वपूर्ण धार्मिक शहर है वृंदावन मथुरा से 15 किलोमीटर की दूरी पर है। ये श्कृष्ण की जन्मभूमि एवं द्वारकाधीश मंदिर के कारण प्रसिद्ध है। यहाँ की भाषा बृज भाषा है और यहां के लोग राधा द्वारा कृष्ण को निमंत्रण वाला गीत रसिया बहुत गाते हैं 

  • "कान्हा बरसाने में आय जइयो, बुलाई गई राधा प्यारी 
  • जो कान्हा तोय भूख लगे हैं अरे माखन मिश्री खाए जइयो।" 

पाकिस्तान में हमारी बहुत ज्यादा जमीन जायदाद थी और कपड़ो का बिज़नेस था। 

वृंदावन के लोगों की सहायता से और श्री बांके बिहारी जी का नाम लेकर मेरे पिताजी ने कपड़े का काम प्रारंभ किया और बाके बिहारी जी की कृपया से हमारी दुकान चल पड़ी। 

हम लोग बहुत दिनों तक मथुरा दरवाजा पंजाबी धर्मशाला में रहे वहां हमारे गांव के भी कुछ लोग थे ईटों के चूल्हे पर खाना बनाते ,ज्यादा बर्तन भी नहीं थी दूसरे तीसरे दिन आटा दाल चावल लाते बहुत धुआं होता यह सब देखकर मेरे दादाजी आंखों में आंसू आ जाते लेकिन कोई चारा नहीं था क्या करते बांके बिहारी की कृपा से धर्मशाला के सामने मकान मिल गया लेकिन मुश्किलें कम नहीं हुई न नल, न बिजली लालटेन एवं दिया जलाते, दूर से पानी भरकर लाते धीरे धीरे  जिंदगी पटरी पर आ गई हम वृंदावन के होकर रह गए बांके बिहारी ने अपने सानिध्य में ले लिया एक माताजी जो पाकिस्तान से ही वृंदावन आई थी उन्होंने वहां के लोगों से मिलकर जमुना किनारे स्कूल प्रारंभ किया जिसमें हमारे पिताजी ने हमारा एडमिशन करा दिया। बाद में यही स्कूल "श्रीकृष्ण चंद्र कन्या जूनियर हाई स्कूल" नाम से प्रसिद्ध हुआ। वृंदावन की अनोखी चमत्कार जिनकी मैं खुद गवाह हूँ जैसे- कुंज गली घने पेड़ों वाला वन है जिसे निधिवन के नाम से लोग जानते हैं उस निधिवन में राधा कृष्ण का एक मंदिर है मंदिर का पुजारी रात को पानी का लोटा दातुन और लड्डू मंदिर में रखते हैं सवेरे लड्डू टूटा हुआ होता है दातुन चबाई हुई मिलती है कहते हैं कि राधा कृष्ण इस मंदिर में आते हैं दातुन करते हैं लड्डू खाते हैं और रास रचाते हैं निधिवन में रात के समय पशु पक्षी मनुष्य कोई नहीं रहता एक बार एक साधु दर्शन की अभिलाषा में पुजारी से छिपकर घने पेड़ों के पीछे बैठ गया सब ने देखा वह संत हाथ जोड़े समाधि लगाए हुए ध्यान मग्न मृत पाया गया।

वृंदावन की होली का तो क्या कहना सड़कें गलियां रंग और गुलाल से लाल हो जाती हैं श्री बांके बिहारी के मंदिर में बड़े-बड़े हौजों में पानी और फूल भर दिया जाता है मंदिर के लोग भक्तगण पुजारी गोस्वामी रंग से सरोवर मस्त होकर भांग पीकर सब लोग होली खेलते हुए गाते हैं "आज बिरज में होली रे रसिया उड़े रे गुलाल लाल रे बदरा चल गए अटारी रे रसिया आज बिरज में होली रे रसिया" मंदिर पूरा फूलों से सजाया जाता है श्री बांके बिहारी का श्रृंगार भी फूलों से किया जाता है पूरे मंदिर को फूलो से सजाया जाता है। ऐसा लगता है जैसे मंदिर फूलों से ही बना हुआ है।लठमार होली की तो बात ही निराली है जो सिर्फ यही पर खेली जाती है। महिलाएं सज धज घुंघट निकाल साथ मे लाठी डंडा लेकर  होली खेलने जाती हैं पुरुष बड़े-बड़े लोहे के सुरक्षा कवच लगाकर होली खेलने जाते इस होली को देखने बहुत लोग आते है और आनंद प्राप्त करते हैं। रंग जी के मंदिर में होली के प्रथम दिन से लेकर पंचमी तक आलीशान मेला लगता है जगन्नाथ पुरी उड़ीसा की तरह रथ लोगों द्वारा खींचा जाता है वृंदावन के लोग इस रथ को बड़ी श्रद्धा से खींचते हैं ऐसा माना जाता है कि इस रथ को हाथ लगाने से इंसान को मोक्ष मिल जाता हैं। 

जन्माष्टमी में सावन में सब मंदिरों में झूले पढ़ती हैं बिहारी जी के मंदिर में पूरे सावन झूले पढ़ते हैं 1 दिन में मंदिर में एक ही फूल से झूला श्रृंगार पूरे मंदिर को उसी फूल से सजाया जाता है यदि किसी दिन गुलाब तो किसी दिन गंदा तो किसी दिन कंबल का श्रृंगार होता है और वही फुल पूरे मंदिर से सजाया जाता है मंदिर की भव्यता सुंदरता शब्दों में बयां नहीं की जा सकती आंखों को मन को आनंदवास को शांति मिलती है मन करता है कि मंदिर में ही बैठे रहे और  बांके बिहारी के दर्शन करते रहे हम सब सहेलियां सवेरे सवेरे स्नान करके निराहार गाती बजाती मंदिर में जाती और रात के 12:00 बजे तक श्री कृष्ण जन्म लेने तक बैठी रहती और भजन गाती रहती और इतनी खुश होती कि खुशी से नाचने लगती और गाते "झूला झूले बिहारी यमुना तट पर मत जइयो रे अकेली कोई पनघट पर बांके बिहारी राधा प्यारी जोड़ी लागे अति प्यारी बसे नैनन में झूला झुलत बिहारी यमुना तट पे" कार्तिक नहाने हम सब लड़कियां महिलाएं जमुना घाट पर जाया करते थे हमारे समय यमुना साफ-सुथरी थी जब से कंपनियों का कचरा अन्य प्रकार की गंदगी जमुना काजल मेहरा और कशाला हो गया है.

वृंदावन की जमुना नदी पापियों की तारणहार है कहते हैं जमुना बांके बिहारी कदम के वृक्ष की महिमा का महिमामंडन ग्रंथों में किया गया है संत महात्मा जमुना जी के किनारे यह स्तुति करते हैं आरती गाते हैं "रेणुका रजत पहार वारो खीर सुधा सिंधु बारो जमुना कलाम पे वारो कोटी कामधेनु 11 कपिला पे वारो कल्पतरु को कदंब अभी राम पे वाह रे शत कोटी काम प्यारे घनश्याम पे वारु सब देव लोक 11 मंदिर पे वारो दारू ब्रह्मलोक वृंदावन धाम पर।"

वृंदावन के मंदिरों की संख्या और उनका वर्णन करना असंभव है लेकिन जो मंदिर मैंने देखे हैं उनका वर्णन कर रही हूं रसिक बिहारी मंदिर, राधा रमण मंदिर, कृष्ण बलराम मंदिर, दामोदर दास मंदिर, विष्णु गोपालन मंदिर, रंगजी, प्रेम मंदिर, स्थान मंदिर, पागल बाबा मंदिर एक विशेष मंदिर हैं जब पागल बाबा की सवारी निकलती है बड़े-बड़े टोकरी में फल रखे जाते हैं जैसे-जैसे पागल बाबा उन फलों को लोगों की तरफ भक्तों की तरफ फेंकते हैं वह टोकरी अपने आप भर जाती है यह चमत्कार लोगों ने देखा है.

 वह इन बातों को सब को बताते हैं शाह जी का मंदिर यह मंदिर कुंज गली के पास है वृंदावन मंदिर बंदरों के लिए प्रसिद्ध है एक बार मै शाह के मंदिर में गई मेरी चप्पल बंदर ले गया बहुत कोशिश की देने का नाम ही नहीं ले रहा था वहां के लोग जानते थे कि कोई चीज बंदरों से कैसे ली जाती है मैंने उन्हें पैसे दिए तब उन्होंने केले आदि देकर मेरी चप्पल छुड़ाई आप यदि वृंदावन जाए तो अपना चश्मा संभाल कर रखें एक बार मेरे पति का चश्मा बंदर ले गया चश्मा लगाकर सब बंदर खूब नाचने लगे की लीलाएं अपार हैं गोवर्धन लीला,चीर हरण लीला, माखन चोरी लीला, कालीदह लीला इत्यादि लीलाओं से मन पुलकित हो जाता है जब लीला को देखा जाता है तो मन तन आंखें पुलकित होती है विशेष भगवान का अनूठा एवं अलौकिक उदाहरण एक बार की बात है गोपियों को जमुना पार जाना था जमुना का जल हिलोरे मार रहा था उफान पर था गोपियां कृष्ण के पास गई अपनी व्यथा कही जमुना किनारे खड़ी होकर कहना हे जमुना मैया श्रीकृष्ण  ब्रह्मचारी हैं यदि उन्होंने मन में कभी किसी पराई स्त्री के बारे में मनन ना किया हो तो हमें रास्ता दे दो। 

गोपियों ने वैसा ही कहा जमुना का वेग शांत हो गया कहते हैं श्री कृष्ण जी की 16000 रानियां  और 8 पटरानियां थी। हम लोग बड़े खुशनसीब थे की सीधे पाकिस्तान से वृंदावन बांके बिहारी जी के चरणों में आ गए श्री बांके बिहारी की कृपा से सभी पारिवारिक कार्य भलीभांति अच्छे से संपन्न हो गए मेरी पूरी पढ़ाई वृंदावन एवं मथुरा में हुई 1980 में मैं प्राचार्य के पद पर नियुक्त हुई और 2006 को रिटायर्ड हुए आज में अपने परिवार के साथ खुश हूं। बस बांके बिहारी जी के लिए मैं चंद पंक्तियां कहना चाहती हूं.

"मुझे तुमने बांके बिहारी बहुत कुछ दिया है तेरा शुक्रिया है तेरा शुक्रिया है..

इतना दिया मेरे श्याम ने जितनी मेरी औकात नहीं यह तो कर्म है तेरा मुझ पर वरना मुझ में ऐसी कोई बात नहीं।"

टिप्पणियाँ