जीव का जीवन ही कृषि पर आधारित है

  • मानव की नियति और भविष्य जल, भूमि, मिट्टी इन प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण के रूप में है 
  • भूमि मेरी माता है मैं भूमि के पुत्र हूं इसे अपने जीवन में रेखांकन कर भूमि की सेवा, संरक्षण करने के समय की मांग 
किशन भावना 

वैश्विक स्तर पर भारत प्राकृतिक संसाधनों में सर्वगुण संपन्न एक ऐसा देश है जहां सृष्टि की अपारदर्शिता बनी हुई है, बस जरूरत है हमारे अपारदर्शी दृश्यों को अपनी विश्व विशिष्ट पहचान, क्षमता का उपयोग कर उन्हें नष्ट या नष्ट होने से क्योंकि जिस तरह प्राकृतिक दृश्यों का टैपिंग हो रही है, उससे हम अपने आने वाले मिलने के लिए विपत्तियों की स्थिति पैदा कर रहे हैं। 

आज हमें सबसे अधिक संरक्षरण की आवश्यकता है जल, भूमि और मिट्टी की है और वह भूमि, मिट्टी में हमारी कृषि है इसलिए श्लोकों में भी आया है जीव जीवनम् कृषि अर्थात जीव का जीवन ही पर कृषि आधारित है क्योंकि मानव की नियति और भविष्य जल, भूमि, मिट्टी में प्राकृतिक संसाधन का संरक्षण निरंतर है। 

भारत में भूमि की करें तो हम उन्हें उनके माता-पिता हैं इसलिए श्लोक में आया है कि माता भूमि: हम पुत्रो अहम पृथव्या -अर्थात भूमि हमारी माता है और मैं भूमि का पुत्र इसलिए यह श्लोक मनीषियों को अपने जीवन में रेखांकन कर सकता हूं भूमि की सेवा और संरक्षण करना वर्तमान समय की मांग है क्योंकि इस भूमि से हमारी कृषि जुड़ी हुई है वैसे भी भारत एक कृषि प्रधान देश है और 70 फ़ीसदी जनसंख्या कृषि पर टिकी है

भूमि की रक्षा, सेवा, संरक्षण करना हर भारतीय का परम कर्तव्य में हम अन्नदाता द्वारा कृषि के रूप में किए गए यज्ञ में अपने सहयोग रूपी आहुति भरते हैं, हम आध्यात्मिक रूप से मनीषियों के लिए बेहतर होंगे।   कृषि भूमि, घटती जमीन, जमीन पर कब्जा, शहरीकरण, घूमने के छटपटाहट, गढों जैसे कई मुद्दे करते हैं, हालांकि सरकार ये लाइन कर रही है

यह अपनी रणनीति सड़क पर दिखने के क्रम में स्पष्ट करने के क्रम में कार्य शुरू और कृषि मंत्रालय सहित कई संबंधित मंत्रालय समय-समय पर कई वेबिनार, अंतर्राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन, सेमीमीटर, कृषि रोजगार की सेवाएं लेती हैं, लेकिन हमें इस क्षेत्र के लिए संबंधित प्रौद्योगिकी की सेवाओं से जल, भूमि और मिट्टी को संरक्षित करने के लिए लाइनबंक करना है। होगा। पीरेज की बात अगर हम पूर्व उपराष्ट्रपति द्वारा किसी घटना में शामिल हों, तो पीआईबी के अनुसार उन्होंने यह भी कहा कि इसका कारण यह होगा कि प्राकृतिक स्रोत जैसे जल, मिट्टी, भूमि अक्षर नहीं हैं, न ही इन्हें फिर से बनाया जा सकता है। 

मानव की प्रकृति और भविष्य इन प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण पर ही निर्भर है। वैज्ञानिक सर्वेक्षण के अनुसार देश के अधिकांश राज्यों में अधिकांश भूमि की उर्वरा शक्ति कम हो रही है। देश के एक बड़े हिस्से में विशेष रूप से पश्चिमी और दक्खन के क्षेत्र में मिट्टी सुख कर रेतीली बन रही है। 

जलन की स्थिति के लिए सलवार का तलना हो रहा है। ग्लॉस का स्तर नीचे आ गया है और मिट्टी कम हो गई है जिससे उसका जैविक अव्यव समाप्त हो रहे हैं। सूक्ष्म और सूक्ष्म पदार्थों की कमी के कारण मिट्टी में परिवर्तन हो रहा है।

मिट्टी के स्वास्थ्य के लिए प्राकृतिक जैविक खेती आशा की नई किरणें हैं। पारंपरिक ज्ञान के आधार पर स्थानीय संसाधनों, जैसे गोबर, गौ मूत्र आदि की सहायता से न केवल कृषि की बढ़ती लागत को कम किया जा सकता है बल्कि भूमि की जैविक संरचना को बनाए रखा जा सकता है। पारंपरिक खाद और पारंपरिक पद्धति से कम लागत में ही बनाए जाते हैं जिससे किसानों को भी प्राप्त हो जाता है।

समय के साथ, भूमि के टूटने के लिए रासायनिक खाद, डिमिल आदि की खपत बढ़ती जा रही है। विगत दशकों में खपत का एक ही आरोप और अपराध का व्यवहार एक साथ छह गुना बढ़ गया है, जिससे किसानों की जमीन के दुष्चक्र में फंस गया है और किसान कर्ज़ के। 

हमारी जिम्मेदारी है कि हम धरती माता की सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करें। उसे वैजिक उर्वरता बनाए रखें। प्राकृतिक जैविक खेती ही इसका समाधान देती है।यह संतोष का विषय है कि मिट्टी के स्वास्थ्य को बचाने के लिए सरकारी और गैर-सरकारी स्तर पर, आप इस तरह के कार्य द्वारा गंभीर प्रयास किए जा रहे हैं।

सरकार द्वारा मिट्टी के स्वास्थ्य को बारह पैमानों पर जोड़ने के लिए, सोइल हेल्थ कार्ड व्यापक रूप से प्रचलित हैं। मिट्टी की जांच के लिए दायरा के नेटवर्क का लगातार विस्तार किया जा रहा है। कृषि हमारी समृद्धि और सम्मान का प्रतीक है। ऋग्वेद में कहा गया है :

  • कृषिमित कृषिस्व वित्ते रमस्व बहुमन्यमान:
  • कृषि करो और सम्मान के साथ धन मई करो

प्राकृतिक खेती न केवल हमारे किसानों के जीवन में वृद्धि बल्कि धरती माता-पिता को सम्मान और स्वास्थ्य भी प्रदान करेगी।

मानव समाज का निर्माण, कृषि के विकास के निशान के साथ। हमारे पर्व, पर्व, संस्कृति, संस्कार, सभी सदियों से कृषि केंद्रित रहे हैं। 

भारतीय शास्त्रों में कहा गया है जीव जीवनम् कृषि: अर्थत जीव का जीवन ही कृषि पर आधारित है। कृषि, हमारी संस्कृति, प्रकृति से अलग नहीं हो सकती।

भारतीय परंपरा में कृषि और ग्रामीण व्यवस्था के प्रामाणिक प्रामाणिक ग्रंथ होते हैं, जैसे: पराशर कृत कृषि पराशर, पराशर तंत्र, सुरपाल कृत वृक्षायुर्वेद, मलयालम में परशुराम कृत कृषि गीता, सारंगधर की लिखी उपवनविनोद आदि। हमारे राष्ट्रीय गीत में भी वंदे मातरम् के रूप में धरती माता की वंदना की गई है। उसे सुजलाम सुफलाम अर्थात पावन जल और फल प्रदान करने वाला कहा गया है।

ऐसी धरती की स्वच्छता के रूप में, हम उसके स्वास्थ्य, उसके पोषण की निगरानी कर सकते हैं? कृत्रिम रसायन डाल कर, सालों तक उसका दोहन और शोषण कैसे कर सकते हैं! माता के प्रति निष्ठा हमारे सनातन संस्कारों के विरुद्ध है। उन्होंने कहा कि कृषि, हमारी संस्कृति, प्रकृति से अलग नहीं हो सकती। 

वे कृषि अनुसंधान से, भारतीय परंपरा में कृषि और ग्रामीण व्यवस्था पर प्रमाणित प्रामाणिक ग्रंथ जैसे: पराशर कृत कृषि पराशर, परा तंत्र, सुरपाल कृत वृक्षायुर्वेद, मलयालम में परशुराम कृत कृषि गीता, सारंगधर कृत उपविनोद आदि पर शोध और किसानों को हमारी प्राचीन कृषि योजना पेश करने का आग्रह किया।वे कृषि बंधन से जुड़े हुए हैं कि वे जैविक खेती और प्राकृतिक खेती को अपने कर्मों में शामिल करें और कृषि के क्षेत्र में नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा दें। 

इस क्षेत्र में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री ने कहा कि एक कालखंड था, जब देश में भोजन का संकट था, जिसके चलते रासायनिक खेती के साथ हरित क्रांति हुई लेकिन अब अलग स्थिति है। 

हमारा देश सबसे ज्यादा खाने के मामले में दुनिया में नंबर एक या नंबर दो पर है और कृषि सूचकांक भी बढ़ रहा है, जो चार मिलियन डॉलर तक पहुंच गया है।

इस बीच के कालखंड में भौतिक सोच के परिणामस्वरूप भूमि के स्वास्थ्य की चिंता ओझल हुई, लेकिन अब देश की आजादी के पचहत्तर साल भर जा रहे हैं, ऐसे अवसर पर जरूरी है कि जमीन के दबाव को टिकाएं। इसलिए यदि हम पूरे विवरण का विश्लेषण करते हैं और उसका विश्लेषण करते हैं तो हम चाहते हैं कि जीव का जीवन ही कृषि पर आधारित हो। 

मानव की नियति और भविष्य जल, भूमि, मिट्टी इन प्राकृतिक दृश्यों का संरक्षण स्थायी रूप से भूमि मेरी माता है मैं भूमि के पुत्रों को अपने जीवन में रेखांकन कर भूमि की सेवा, संरक्षण करना चाहता हूं समय की मांग है।

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