महलों की दीमक
उजले महलों की नीवों में,
दीमक भी पलती।
चौखट पर नक्काशी है पर,
वो है कुतरन की।
कलाबत्तुओं के पर्दों पर,
झालर उतरन की।
फानूसों में बिना तेल की,
लालटेन जलती।
उजले महलों की नीवों में,
दीमक भी पलती।१।
दीवारों से ताख चुराकर,
दीपक भाग रहे।
पीछे छूटी कालिख कहती,
पुरखई जाग अरे!
देख! वसीयत के पन्ने की,
हर धन्नी हिलती।
उजले महलों की नीवों में,
दीमक भी पलती।२।
शीशम के दरवाजे डरते,
छज्जे तक हैं घुन।
पॉलिश की मोटी परतों में,
मची हुई कह-सुन।
पर ऊँचे कॉलर की टमटम,
टापों पर चलती।
उजले महलों की नीवों में,
दीमक भी पलती।३।
- विनय विक्रम सिंह
मनकही
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