अभिव्यक्ति की आजादी

एक स्वतन्त्र, सुसंस्कृत, सभ्य और लोकतान्त्रिक समाज के निर्माण की आधारशिला..

दीप्ति डांगे

मुम्बई। "अभिव्यक्ति की आजादी" एक स्वतन्त्र, सुसंस्कृत, सभ्य और लोकतान्त्रिक समाज के निर्माण की आधारशिला है।" जो किसी भी लोकतंत्र को मजबूत करती है इसलिये भारत के संविधान मे इसको एक मौलिक अधिकार मानकर इसकी व्याख्या की गई है जिसके साथ कुछ मर्यादाये जुड़ी है जैसे उस अभिव्यक्ति का प्रभाव देश की एकता,अखण्डता एवं सम्प्रभुता पर नहीं पड़ना चाहिए,सामाजिक व्यवस्था, किसी धर्म, जाति या सौहार्द को ठेस नहीं पहुंचनी चाहिए, न्यायालय की अवमानना नहीं होनी चाहिए और  अभिव्यक्ति दुर्भावनापूर्ण नहीं होनी चाहिए।

अभिव्यक्ति की आजादी को ‘‘बोलने की आजादी’’ के रूप में समझा जाता है, लेकिन वह सिर्फ बोलने की आजादी नहीं, उसमें और भी कई चीजें आती हैं। भाषण या वक्तव्य देने से लेकर लिखने और पत्र-पत्रिकाएँ प्रकाशित करने, चित्र और व्यंग्य चित्र बनाकर उन्हें प्रदर्शित और प्रकाशित करने, नाटक और नुक्कड़ नाटक लिखने-करने, डॉक्यूमेंटरी और फीचर फिल्में बनाने-दिखाने, रेडियो और टेलीविजन के कार्यक्रम प्रस्तुत करने, सार्वजनिक मंच या सोशल मीडिया पर दूसरों से सहमत-असहमत होते या मतभेद और विरोध प्रकट करते हुए अपने विचार व्यक्त करने, सड़कों पर जुलूस निकालने और नारे लगाने, धरना-प्रदर्शन आदि।जिससे देश की जनता अपने विचारों से समाज और सरकार को अवगत करा सके और जागृत कर सकें, लोगों तक अपनी बात पहुंचा सके। 

हमारी बोलने की आज़ादी वहां पर सीमित हो जानी चाहिए जहाँ इससे राष्ट्र की एकता और अखंडता या फिर इसकी सुरक्षा को खतरा हो, किसी व्यक्ति या धर्म जाति के लोगो को ठेस पहुंचे, नकारात्मकता फैले। 

लेकिन सच्चाई ये है कि दुनिया का किसी भी राष्ट्र में पूरी तरह से बोलने की स्वतंत्रता नही है..जैसी स्वतंत्रता भारत में है। 

भारत में जो आप चाहो कर सकते हो और बोल सकते हो। सोशल मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, अंतरराष्ट्रीय मीडिया या अन्तराष्ट्रीय मंचो पर जाकर अपने समाज, देश और संस्कारों को शर्मिंदा कर सकते हो। आप चाहो तो अपने विश्व विद्यालय में देश विरोधी नारे लगा सकते हो और चाहो तो सेना को गाली दे सकते हो। 

आप चाहो तो राष्ट्रगीत का भी विरोध और अपमान भी कर सकते हो और आप चाहो तो देश के टुकड़े टुकड़े करने की बात कर सकते हो। हालांकि हमारे यहाँ सेंसर बोर्ड है फिर भी आप चाहो तो किसी धर्म की मजाक और उसको बदनाम कर सकते हो। वैसे तो देश में पोर्न बनाना मना है,लेकिन आप चाहो तो scared games जैसी tv series बना सकते हो। लालकिले पर तिरंगा हटाकर देशद्रोहिया का झंडा लगा सकते हो। सरकार को दंगो की धमकी दे सकते हो।

JNU, AMU जैसे देश के बड़े शिक्षा मंदिरों अब देश विरोधी ताकतों का खुला मंच बन गया जहां पर देश द्रोही छात्रों को भड़काकर इस अधिकार का बहुत अच्छे से दुरूपयोग करवा रहे है। और फिर अभिव्यक्ति की आजादी बता कर उनका समर्थन कर जनता को बेवकूफ बनाने की कोशिश करते है और देश को तोड़ने की बात करते है आतंकवादियों को शहीद बताते है जैसे-

"भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशा अल्लाह इंशा अल्लाह"।

"कश्मीर की आज़ादी तक जंग रहेगी, जंग रहेगी"।

"भारत माता डायन है"। 

"अफ़ज़ल हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल ज़िंदा हैं'। 

"कितने अफ़ज़ल मारोगे, हर घर से अफ़ज़ल निकलेगा।"

खुद को कॉमेडियन कहने वाले एन्टी हिन्दू,  संजय राजौरा, कुणाल कामरा, मुनव्वर फारूकी, सुरलीन कौर, वीर दास जैसे इन स्टैंडअप कॉमेडियन की पूरी तथाकथित ब्रिगेड वहां कॉमेडी के दौरान हिंदू देवता का मजाक उड़ाते है, देश की मजाक उड़ाते है और उनके सामने तथाकथित खुद को बुद्धिजीवी और सेक्युलर कहने वाले दर्शक हंसते हैं। क्योंकि वो समझते है यही स्वतंत्रता अभिव्यक्ति की है और ऐसे लोगो को बढ़ावा देने राजनीतिक पार्टियां, कम्युनिस्ट, अभिनेता, तथाकथित वाम-दक्षिण के साहित्यकार या कलाकार आदि आगे आते है।भारतीय राजनीति में जातिगत संकीर्णता के कारण देश को धर्म जाति में बांटते बांटते अब राजनीतिक पार्टियां वोट के खातिर देशद्रोहियो का साथ देने लगी।यह देश के लिए बहुत ही खतरनाक स्थिति है।

"आर्मी चीफ सड़क छाप गुंडे जैसा।"

"सर्जिकल स्ट्राइक नहीं, फ़र्ज़ीकल स्ट्राइक।"

"लोग तो मरते ही रहते हैं, तो क्या हुआ।"

"मोदी को हटाने में पाकिस्तान हमारी मदद करे।"

अभिनेता और मीडिया पैसा और TRP के खातिर इन देश द्रोहियो के साथ खड़े हो जाते है। ऐसे देशद्रोहियो पर अगर कार्यवाही की जाए या अगर कोई इनके विरुद्ध आवाज उठाई या विरोध करे तो देश मे असहिष्णुता फैल जाती है लोकतंत्र खतरे में आ जाता है, भारतीय और हिन्दू होने मे शर्म आने लगती, अचानक से इनको भारत मे रहने मे डर लगने लगता है, कम्युनिस्ट इन जैसे लोगो को हीरो बना देती।जहां तक कि ऐसे लोगो ने तो भारत मे  सेक्युलर और कम्युनल की परिभाषा ही बदल दी है।

ऐसा क्या कारण है जो ये लोग इस देश के अहित और देश और हिन्दू धर्म विरोधी बातें करते हैं? इसका कारण है अंतरराष्ट्रीय मीडिया द्वारा अटेंशन पाना, राजनीतिक पार्टियों से टिकट मिलना और नेता बन जाना।दुश्मन देशो से धन की प्राप्ति।अंतराष्ट्रीय पत्रिकाओं के कवर पेज पर आ जाना अन्तराष्ट्रीय पुरस्कारों के लिये नामांकित किये जाना।

इस देश का खुद को बुद्धिजीवी कहने वाला बोलता ज्यादा और सोचता कम है। शायद उसकी सोचने समझने की शक्ति सिर्फ किताबो तक ही सीमित हो गयी है। वो गलत और सही मे अंतर ही नही कर पाता।वह भी इतना बंटा और डरा हुआ है कि सत्ता की आलोचना ही अपनी ताकत मानता है। 

आजकल अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर कम्युनिस्ट, राजनीतिक पार्टियों ने एक नया एजेंडा बनाया है जिस के लिये बाकायदा टूलकिट तैयार की जाती है। इसमें बाहरी देशो से फंडिंग होती है। एक तबके को टारगेट किया जाता है, आंदोलन, धरने, देश और सरकार विरोधी नारे लगा कर हिंसा और अराजकता फैलाकर देश को अस्थिर करने की कोशिश की जाती है, दुनिया मे बैठे देश के दुश्मन ऐसे आंदोलनों को हवा देते है जहाँ तक के दूसरे देशों की संसद के अंदर भारतीय सरकार पर दवाब डालने के लिये आवाज उठाते है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया इसको जोर शोर से उछालती है और सरकार को झुकने पर मजबूर किया जाता है। वर्तमान मे, अभिव्यक्ति के साथ व्यक्ति का आग्रह उग्र और करूप रूप ले चुका है। जिसके कारण देश की अखंडता और संप्रभुता टूटने की कगार पर है। समाज कई भागों, धर्म और जातियों मे बंट रहा है। 

देश की एकता को बचाने के लिये हम जनता को जागना पड़ेगा और नेता हमको वोट बैंक के लिए हमे धर्म जाति के नाम पर या फ्री का लालच देकर सत्ता पाने चाहते है उनको उनकी असली जगह दिखानी पड़ेगी।

ये तभी संभव है जब हम धर्म जाति से ऊपर उठे और फ्री का लालच छोड़े क्योंकि कोई भी वस्तु फ्री नही होती। इसलिये उन सभी नेतायों अभिनतायो, मीडिया, और सेलेब्रिटीज़ का बायकाट करना होगा जो देश द्रोहियो के साथ है। ये तभी हम कर सकते है जब हम एक साथ हो, हमे स्वयं को किसी जाति या धर्म का कहने के पहले भारत का नागरिक मानना होगा, भारत की इज्जत करना होगा, हमे आपस मे न लड़कर गरीबी से ,बेरोजगारी के खिलाफ लड़ें। नफरत के खिलाफ खड़े हों। स्वतंत्रता बोलने की हमारा मौलिक अधिकार है जो देश की आवाज होती है। यह हमारी आजादी की सबसे बड़ी विरासत है। लेकिन ध्यान रखे इसे बड़बोलेपन से या विकृत करके हम अपने देश की संस्कृति और सभ्यता को अपमानित न करें।

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