सर्वोच्च न्यायालय, सरकार के आदेशो को रखा ठेगे पर पावर कार्पोरेशन

वाह उ0प्र0 पावर कार्पोरेशन....
उ0 प्र0 पावर कार्पोरेशन मे बैठे  बडका बाबूओ ने  सर्वोच्च न्यायालय, सरकार के आदेशो को रखा ठेगे पर, रची चुनाव मे सरकार को हराने की पटकथा
आनन्द 
लखनऊ उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन लिमिटेड मे अवैध रूप से बैठे भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी यानि बडका बाबू ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश व सरकारी आदेशो को भी ठेगे पर दिया है और रच दी सरकार को चुनाव हराने की पटकथा जिसका चुनाव मे हुआ व्यापक असर।
पाठक यह सोच कर हैरान होंगे कि एक अदने से कार्पोरेशन के अवैध अध्यक्ष की इतनी हिम्मत कि वह भारत के सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों को ना माने तो जवाब है "जी हाँ"।
इन अनुभवहीन बड़का बाबुओं यानि भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारीगणो को यह मालूम ही नही कि यह उत्तर प्रदेश सरकार का एक उपक्रम है यानि कार्पोरेशन है जो कि कम्पनी एक्ट के जरिए चलेगा परन्तु यहाँ पर तो चलाते है यह भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी पूरी तानाशाही
 पूर्व मे एक बडका बाबू नियुक्त हुए थे जिनके समय मे पीएफ घोटाला हुआ था और बाद मे वह ऊर्जा सचिव भारत सरकार भी बन गये थे अरे वही जो अपना आफिस लंच पर भी जाते हुए  पेपर टेप से सील करते थे स्मार्ट मीटर और ईआरपी (ERP ) के जनक सभझ गये ना अरे  जिसने पूर्व प्रबन्ध निदेशक, उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन के सर पर पीएफ घोटाले का ठीकरा फोडते हुए उन्हें जेल भेज दिया गया था, उन्ही के कार्यकाल से ही सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना का क्रम भी शुरू हुआ। 
तो मामला कुछ ऐसा है कि  सुरेश चन्द्र शर्मा बनाम अध्यक्ष यूपीएसइबी व अन्य सिविल याचिका संख्या 79/1997  मे दिनाक 21/3/2007 को  सुप्रीम कोर्ट द्वारा किये गये आदेश  के अन्तर्गत कहा गया था कि "स्थानांतरण नीति की जगह उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन मे  दो सदस्यीय हाई पावर कमेटी सारी ट्रान्सफर पोस्टिग करेगी।" लेकिन इन बडका बाबूओ के साथ साथ अपर मुख्य सचिव महेश गुप्ता (जो अभी 31/5/2024 को ही सेवानिवृत हुए हैं ) तक को यह मालूम ही नही है कि ऐसा कोई आदेश माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित भी  किया गया है जब सर्वोच्च न्यायालय  की हो रही अवमानना, भ्रष्टाचार व सरकार के दिशा-निर्देश और नियम विरुद्ध  हो रहे कार्यो की आपत्ति करने के लिए एक पत्र देने के लिए 7/5/2024 को अपर मुख्य सचिव महेश कुमार गुप्ता से उनके कार्यालय मे मुलाकात हुई उस वार्तालाप को पाठको के सामने रख रहा हूँ 
*जब अपर मुख्य सचिव ऊर्जा का ध्यान सर्वोच्च न्यायालय की अवमानन की ओर आकर्षित किया गया, तब उनका जवाब था कि "इसमे मै क्या करू? जाओ सर्वोच्च न्यायालय, वहाँ अवमानना का केस दाखिल करो, यह व्यवस्था तो ऐसे ही चलेगी और फिर कार्पोरेशन के घाटे के बारे मे बोलते हुए कहा कि यह सफेद हाथी जिसे आप पावर कार्पोरेशन कह रहे है बहुत घाटे मे जा रहा है इसको और ज्यादा खीचा नही जा सकता इसका तो हम  निजीकरण कर देने का विचार बना चुके है आप इसको भी ले कर सर्वोच्च न्यायालय मे याचिका दायर करो वही जाओ और उनको ही बताओ।"*
जब उनसे *दूसरा प्रश्न पूछा कि उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन मे मेमोरेंडम आफ आर्टिकल का पालन नही हो रहा है?*
इस पर उन्होने कहाँ कि "*इस पर मै क्या कर सकता हूँ जाओ मुख्यमंत्री जी से बोलो आप अखबार वाले हो छाप दो हमे कोई फर्क नही पडता।"तो जैसा अपर मुख्य सचिव महोदय ने बोला वही हूबहू हमने पाठको के सामने रख दिया* । 
खैर जैसा *कि अपर मुख्य सचिव ऊर्जा ने जैसा कहा, यहाँ पर वही सब होता दिखाई दे रहा है, हर स्थानांतरण के आदेश की कापी पर सुरेश चन्द्र शर्मा के माननीय सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त वाद मे हुए आदेश का जिक्र होता तो जरूर है, परन्तु पालन कभी भी नही होता जब कि पूर्व मे ट्रान्सफर पोस्टिग के समय इन आदेशो का पालन होता था* ।
 *सरकार की आंख मे धूल झोक कर यह भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन मे आपना मनमाना साम्राज्य चला रहे है* ।
फिर जब *अपर मुख्य सचिव से तीसरा प्रश्न पूछा गया कि मीटर सप्लाई मे MSME के अन्तर्गत केन्द्र सरकार ने एक दिशा निर्देश जारी किए है कि 20 से 25% तक उत्पाद MSME से लिए जाए का स्पष्ट दिशा निर्देश है परन्तु  प्रबन्ध निदेशक पावर कार्पोरेशन ने एक आदेश संख्या* *320/नो॰स्मा॰मी॰प्रो/पाकलि/23 को* *दिनांक 29 अगस 2023 मे दिये खये आदेश मे 3% परफार्मेस गारेन्टी जमा करने का आदेश जारी किया जब कि MSME को इसमे छूट का प्रवधान है* 
इस पर *अपर मुख्य सचिव ने कहा "पावर कार्पोरेशन कम्पनी एक्ट के अन्तर्गत है यह नियामावली हम पर लागू नही होती*। 

यानी कि *जब अवैध रूप से  नियुक्त अध्यक्ष पावर कार्पोरेशन व प्रबन्ध निदेशक पावर कार्पोरेशन व प्रबन्ध निदेशक(समस्त डिस्कॉम)  की नियुक्ती की बात होती है तो यह सरकार की मंशा, और जब केन्द्र सरकार के दिशा-निर्देश के पालन करने की बात हो तो हम कम्पनी...*  
*निजीकरण व मीडिया के नुमाइदो के सामने दिये बयानो से पलटने के बारे मे पूछा*  
*तो जवाब था कि जो मर्जी हो, छाप दो*
*अंदाज यह बताने को काफी था कि कोई भी इनका कुछ भी नही बिगाड सकता यह सर्वे सर्वा है*... 
 वैसे *इसी तरह की भाषा  अध्यक्ष पावर कार्पोरेशन अपनी रिव्यू मीटिग मे अक्सर कहते आए है वही सब बाते ऊर्जा सचिव की अध्यक्ष पावर कार्पोरेशन दोहराते है यानि इन सभी बडका बाबूओ की मिली भगत है कार्पोरेशन डुबोने कर भ्रष्टाचार की मलाई आपस मे बाटने मे*। 

*यही सब कारण है कि उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन की सभी वितरण कंपनियां यानि समस्त डिस्कॉम घाटे मे जा रहे हैं,वर्ष 2000 में उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद को इस आशय से तोड़कर निगमों  यथा उ0 प्र0 राज्य विद्युत उत्पादन निगम लि0(UPRVUNL),उ0 प्र0 जल विद्युत निगम लि0 व उ0 प्र0 विद्युत वितरण निगम लि0(UPPCL),उ0 प्र0 विद्युत पारेषण निगम लि0(UPPTCL )इस घाटे से उबरने की आशा से सृजित किया गया था कि इसे छोटे छोटे भागों में करने से निरीक्षण और निर्देशन कुशलता से हो सकेगा तथा तत्कालीन बड़का बाबू  कुछ समय के लिए ही नियुक्त किए गए थे कि जब तक मेमोरेंडम आफ आर्टिकल नही बन जाता तब तक की व्यवस्था यह बडका बाबू संभालेंगे और मेमोरेंडम आफ आर्टिकल बन जाने पर चयन प्रक्रिया लागू कर दी जाएगी ऐसी सरकार की मंशा थी। जिसको कि सर्वोच्च न्यायालय मे एक शपथपत्र के माध्यम से भी उत्तर प्रदेश सरकार ने 2004 मे  व्यक्त भी किया  था ।परन्तु दुर्भाग्यवश सब योजनाए धरी की धरी रह गयी इन बडका बाबूओ के खेल के आगे....*
 *विघटन के समय विभागीय घाटा 50 करोड़ था जिसे घटा कर विभाग लाभ में लाए जाने की योजना थी परन्तु विभाग फायदे में तो दूर वर्तमान में 1 लाख करोड़ से ऊपर के घाटे में आ गया है,क्या यही इनकी काबिलियत है और यही इनका प्रबंधन है?*

*इन बड़का बाबुओं ने तो इस विभाग की रीढ़ ही तोड़कर रख दी तथा जिसका ठीकरा फोड रहे है विभागीय अधिकारियों,कर्मचारियों तथा जनता पर तथा सलाह दी जा रही है कि इसे बेंच देने में ही भलाई है...!!!*
*जबकि असलियत तो यह है कि इन बड़का बाबुओं ने विभाग को अपने मनमाने आदेशो से खोखला कर दिया है और सरकार को विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों के प्रति गुमराह करते आए हैं क्योंकि सरकार और विभाग के बीच की महत्वपूर्ण कड़ी जो हैं*....
जैसा कि पाठको को याद होगा मध्यांचल विद्युत वितरण निगम के *प्रबंध निदेशक महोदय द्वारा विराज बिल्डर के बीबीडी ग्रीन प्रोजेक्ट मे इन्फ्रास्ट्रक्चर का काम पूरा ना होने के बावजूद वितरण निगम को करोडो का घाटा पहुचने के बाद भी बडका बाबू द्वारा चादी का जूता खा कर नियम विरुद्ध अनुचित लाभ दिया गया है परन्तु आज 11 दिन बीत जाने के बावजूद कोई कार्रवाई नही हुई, वहीं दूसरी तरफ स्थानांतरण नीति की आड़ मे  माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की धज्जिया उडाने के साथ साथ स्थानांतरण कराने व मलाईदार पोस्ट पर बने रहने के लिए कर्मचारियो व अभियन्ताओ की फौज चाँदी के जूते के साथ बडकऊ के दरवाजे (म0वि0 वि0नि0लि0) पर खड़ी हो कर अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रही है  इन बडका बाबूओ ने सरकार के आदेशों का पूरा लाभ उठाते हुए मिली छूट को अस्त्र की तरह उपयोग कर लूट की खुली छूट मे बदल लिया है। इसी कुप्रबंधन की वजह से सरकार की छवि जनता की नजरो मे धूमिल हुई है और प्रदेश की जनता भीषण गर्मी मे हाहाकार कर रही है* । 
पाठको की *जानकारी मे है  कि लोक सभा चुनाव के मध्य मे दो बार 50 साल से ऊपर के कर्मचारियो की स्क्रीनिंग का आदेश जानबूझ कर किया गया यह आदेश इन बडका बाबूओ  की मंशा को दर्शाने के लिए पर्याप्त प्रमाण है*।
 जब इस खबर को भी "समय का उपभोक्ता" राष्ट्रीय हिन्दी साप्ताहिक समाचार पत्र ने प्रमुखता से उठाया तो *प्रदेश के ऊर्जा मंत्री श्री ए के शर्मा द्वारा खबर का त्वरित संज्ञान लेकर  कार्रवाई करते हुए तत्काल अध्यक्ष पावर कार्पोरेशन यानि कि बड़का बाबू को तलब कर नाराजगी व्यक्त करते हुए उक्त आदेश को रद्द करने को कहा। इस स्कूटनी के आदेश के परिणाम यह हुआ कि समस्त विद्युत अधिकारी एवं कर्मचारियों मे सरकार के प्रति भय तथा अविश्वास का वातावरण बन गया, उक्त आदेश से प्रदेश भर के अभियन्ताओ से ले कर सविदा/ निविदा कर्मचारियो मे अपनी नौकरी को ले कर एक भय का वातावरण बन गया भले ही यह दोनो आदेश ऊर्जा मंत्री के हस्तक्षेप के कारण रद्द हो गये परन्तु उस छोटी सी समयावधि मे उक्त आदेश,कर्मचारियो को सरकार के खिलाफ भडकाने का अपना उद्देश्य साध गये* । जिसके परिणाम आपके समक्ष है बडका बाबूओ की "फूट डालो डराओ वाली कार्यप्रणली" की वजह से भारतीय जनता पार्टी की आशा के विपरीत आधे से कम की संख्या में लोकसभा चुनाव में सीटें प्राप्त हुई है।
इससे स्पष्ट है कि उक्त आदेश को  पूर्वनियोजित व सरकार के विरोधियो के इशारे पर किया गया था । 
वैसे अध्यक्ष पावर कार्पोरेशन के प्रिय साथी प्रबंध निदेशक मध्यांचल की भूमिका भी कम सरकार विरोधी नही रही,यह जनाब तो अपने अधीनस्थ अधिकारीयो व कर्मचारियो को तो छोड़िए जन प्रतिनिधियो तक से ना ही मिलते है और ना ही उनके व पत्रकारो के फोन उठाते है।
मोहनलालगंज से सासंद इनको फोन करते थे तो यह फोन ही नही उठाते थे क्यो कि वह जनता की समस्याओ पर बात करना चाहते परन्तु यह जनाब तो किसी से मिलना तो छोडिये फोन उठाना तक गवारा नही समझते। इनके वरिष्ठ जो कि खुद अध्यक्ष पावर कार्पोरेशन है के इशारे पर यह सब चल रहा है  तो *फिर यही हुआ जो नही होना चाहिए था इनकी कार्य गुजारियो के कारण लोक सभा मे सीटे कम आयी तथा उत्तर प्रदेश सरकार की छवि भी बुरी तरह से धूमिल हुई। दूसरी तरफ पूर्वांचल का भी यही हाल रहा जहाँ प्रदेश के ऊर्जा मंत्री ने सबसे ज्यादा मेहनत करी व सबसे ज्यादा समय व्यतीत किया उसी जगह से ही चुनाव हार जाना इन्ही अधिकारियो यानि बडका बाबुओ की साजिश का नतीजा है।*  परन्तु इस पर भी इन बडका बाबूओ की सेहत पर कोई प्रभाव नही पडा । उल्टा इनका चाँदी का जूता खाने का सिलसिला बेखौफ जारी है.....  खैर.... ! 

           *युद्ध अभी शेष है* 

*अविजित आनन्द संपादक समय का उपभोक्ता राष्ट्रीय हिन्दी साप्ताहिक समाचार पत्र लखनऊ*

टिप्पणियाँ