जरा-सा मुस्कुरा के चलिए....!!
वक़्त तक़रीबन रात के 8 बजे का रहा होगा। एक छोटा बच्चा मद्धिम रौशनी में अपनी पढ़ाई कर रहा था औऱ पास में ही उसकी माँ रोटियां पका रही थी।
तभी बच्चे के पिता खाने के लिए बैठते हैं औऱ उसकी माँ उन्हें रोटियां देती है।
पिता बेहद सुकून से उन रोटियों को खाना शुरू करते हैं।
अब बच्चा बहुत गौर से अपने पिता की ओर देखते हुए इस बात का इंतज़ार करता है कि वे कब उसकी माँ पर भड़कते हुए अपने गुस्से का इज़हार करते हैं क्योंकि रोटियां बिलकुल जली हुई थी ।
लेकिन बच्चे की उम्मीद के विपरीत उसके पिता ने बड़े इत्मीनान से उन रोटियों को खाना जारी रखा, साथ ही उससे उसकी पढ़ाई के बारे में भी खोज ख़बर ली ।
कुछ देर बाद जब बच्चे की माँ को उन जली हुई रोटियों का ख़याल आया तो उसने अपनी गलतियों के लिए खेद प्रकट किया लेकिन बच्चे के पिता ने कहा कि कोई बात नहीं, उल्टे आज ये रोटियां खाकर मुझें ज़्यादा मज़ा आ रहा है।
अपने पिता के इन बातों को सुन बच्चे को बड़ी हैरानी हुई औऱ उसने उत्सुकतावश पुनः कुछ देर बाद उनसे जानना चाहा कि क्या सचमुच आज आपको जली हुई रोटियां खाकर मज़ा आया?
पिता ने बड़े प्यार से अपने पुत्र के सिर को सहलाते हुए जवाब देना शुरु किया......मेरे बेटे, एक जली हुई रोटी किसी भी इंसान को बहुत ज़्यादा नुकसान नहीं पहुंचाती, मगर एक बेहद तल्ख़, बदज़ुबानी औऱ जले हुए शब्द किसी भी इंसान के जज़्बात को अंदर तक झकझोर देने के लिए काफ़ी हैं।
मेरे बच्चे ये दुनिया बेशुमार नापसंदीदा चीज़ों और लोगों से भरी पड़ी है, इसके साथ ही हम भी कोई बेहतरीन या मुकम्मल इंसान नहीं हैं और मैं ये समझता हूं कि हमारे इर्दगिर्द के लोगों से भी गलतियां हो सकती है।
अपने अहम् को थोड़ा-सा झुका के चलिए..!!
सब अपने लगेंगे जरा-सा मुस्कुरा के चलिए..!!
याद रखना, जीवन में एक दूसरे की मामूली ग़लतियों को नज़रंदाज़ करते हुए रिश्तों को बख़ूबी निभाना ही ताल्लुक़ात में बेहतरी का सबब है।
हमारी ज़िंदगी इतनी छोटी है कि इसमें गलतियों और फ़िर पछतावों की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए।
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