सामाजिक आजादी का नशा।

अशोक कुमार

किसी देश की आजादी के संघर्ष का अंतिम उद्देश्य उसे देश को एक सर्व सम्मत सर्वमान्य संवैधानिक संहिता देने का होता है। वह संहिता सभी धार्मिक  सामाजिक  सभी पंथो निजी ग्रन्थों आदि से श्रेष्ठ और सर्वमान्य होती है।

लेकिन यह आजादी संघर्ष करने वाली पहली पीढ़ियों के लिए अमृत तुल्य सामाजिक प्राण वायु के बराबर होती है। लेकिन पहली पीढ़ी के काल में ही, पहली युवा राजकुमार पीढ़ी को शायद इतिहास शोषण दमन अत्याचार असमानता और गुलामी आदि का कोई ज्ञान नहीं होता है और वहा ऐसा महसूस करती है कि हमारे पूर्वज भी शायद इसी माहौल में जिएं हैं। 

जिस  मूर्खता और अज्ञानता के लालच में में हम जी रहे हैं अर्थात संविधान और संघर्ष का कोई इतिहास ही नहीं रहा है बस यह सब ऐसे शुरू से ही चला आ रहा है जबकि ऐसा नहीं होता है और वह अपनी कभी खत्म न होने वाली मस्त मस्ती में चूर रहता है यह सब उसकी अज्ञानता बस होता है जिसमें सामाजिक जानकारी और उसका सामाजिक इतिहास नहीं समझ में आता है। इन सब परिस्थितियों में यह होता है कि पूर्व और वर्तमान में हमारी व्यवस्था के घातक दुश्मन इसका भरपूर फायदा उठाने का प्रयास करते हैं और हमारे युवाओं को बरगलाकर धर्म  प्रपंच, नशा और अपना मानसिक गुलाम बनाकर अपना हथियार बनाकर हमारे समाज पर घातक हमला कर सामाजिक व्यवस्था को तहस नहस कर देते हैं। 

और कभी न खत्म होने वाली अक्षय  आर्य सामंती बाभन वादी पूंजीवादी व्यवस्था पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित कर लेते हैं और हमारा युवा ठगा हुआ महसूस करता है इन सब परिस्थितियों में अगर हम इस बात का अध्ययन करें तो पता चलता है कि जो आजादी की कीमत हमारे युवा आज नहीं पहचान पा रहे हैं और अपनी मंद मस्ती में चूर है यह क्षणिक मदमस्ती मूर्खतापूर्ण मतदान आने वाली पीढ़ियों के लिए भारी खतरा बनकर आपका पीछा करेगा लेकिन तब बहुत देर हो चुकी होगी जरा सा इसकी बानगी हम कुछ ऐसे करने जा रहे हैं। 

समाज में दो वर्ग बन जायेंगे एक वर्ग शिक्षित होगा, संघटित होगा, सत्ता, सम्पत्ति और व्यवस्था का लोकतांत्रिक अधिकारी होगा। 

देश की संवैधानिक व्यवस्था को अपनी सुविधानुसार दुरूपयोग करेगा और अपनी धार्मिक, आर्थिक सामाजिक , सांस्कृतिक, न्यायिक व्यवस्था को लागू करेगा। पहला वर्ग दूसरे को अपने से बिपरीत अर्थात अशिक्षित, असंगठित ,कमजोर, ग़रीब, लाचार ,असहाय, शोषित, पीड़ित, श्रमिक फौज के मजबूर सदस्य होंगे  सत्ता के मजबूर और मूर्ख मतदाता होंगे, लेकिन सत्ता और व्यवस्था की आभा  माया , महिमा और मलाई भलाई से कोसों दूर होंगे नहीं तो  आपके स्पर्श से पहले वर्ग की एकाधिकार सत्ता और व्यवस्था अपवित्र और अछूत हो जायेगी।

हे,दूसरी,तीसरी पीढ़ी के राजकुमार मतदाताओं सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक आजादी के लिए अपने मतदान की आजादी के अधिकार का प्रयोग अपने सामाजिक दुश्मनों के लिए कदापि न करें।  अपने विवेक का प्रयोग अपने  मतदान,अपनी सामाजिक आजादी के लिए करे ताकि आपके पूर्वजो

 की पीडा के अनगिनत त्याग , संघर्ष  बलिदान अमर रहे।

समाज के दोगले, गद्दारों , वोट के दलालों विभीषणों, हनुमान,अंगद और सिखन्डियो से सतर्क और सावधान रहें। आप अपने वोट की ताकत से सतर्क और सचेत  रहें नहीं तो यह दोधारी तलवार आपके हाथ काट डालेगी।

  आपकी सोने की लंका को आपकी वोट की  माचिस रुपी आग जला कर राख कर देगी।

   आशा के साथ ,,आप एक जागरूक  मतदाता के तौर पर यह कदापि नहीं करेंगे और न ऐसा होने देंगे।

  आर्य पुत्र, पुत्रियों से सावधान।

आर्य सत्ता कभी नहीं स्वीकार।

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