थर्ड डिग्री समाप्त कर वैज्ञानिक प्रमाण जुटाने की ज़रूरत?

  • आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) संशोधन बिल 2022 संसद के दोनों सदनों में पास अब कानून बनेगा..
  • फॉरेंसिक क्षमता बढ़ाने, दोषी सिद्ध की दर बढ़ाने में संशोधित आपराधिक प्रक्रिया संहिता बिल 2022 की महत्वपूर्ण भूमिका.. 
  • आपराधिक प्रक्रिया संहिता में अपराधों के मामले में पुलिस प्रशासन तथा न्यायालयों द्वारा प्रक्रिया अपनाई जाती है उसमें संशोधन से दोष सिद्धि प्रतिशत बढ़ने की संभावना..

किशन भावनानी 

वैश्विक स्तरपर अपराध प्राय हर देश में होता है शायद ही ऐसा कोई देश होगा जहां अपराध दर जीरो हो अगर हम वैश्विक आपराधिक इंडेक्स देखें तो अपराध की किसी देश में दर अधिक, तो किसी देश में कम है पर जीरो नहीं। बड़े बुजुर्गों के अनुसार जिस देश में अपराध की दर जीरो हो वहां के निवासी सतयुग, स्वर्गलोक और सज्जन मुल्कों के निवासी बड़े भाग्यशाली होंगे जहां विश्व का हर मनीषी जीव रहना पसंद करेगा।  

बात अपराध की करें तो यह राई के दाने से लेकर बहुत बड़े पहाड़ रूपी तक हो सकता है परंतु दोनों तो अपराधी ही होंगे और जिसने अपराध किया है वह चाहे गरीबी के अंतिम पंक्ति का अंतिम व्यक्ति हो या देश के सर्वोच्च शिखर पर बैठा व्यक्ति हो दोनों जब न्याय प्रक्रिया में दोषी करार दिए गए हो तो अपराधी ही कहलाएंगे।

अगर हम अपराध के बाद प्रक्रिया की करें तो मेरा मानना है यहां से दो प्रक्रिया शुरू होती है, सामान्यत, खोजी चरण पुलिस द्वारा संचालित एक जिज्ञासु प्रक्रिया है और न्यायिक चरण न्यायाधीशों और वकीलों द्वारा संचालित एक प्रतिकूल प्रक्रिया है।कभीकभी अभियोजक जांच में अग्रणी भूमिका निभाते हैं।

आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) संशोधन बिल 2022 की करें तो इसे 4 अप्रैल 2022 को लोकसभा और 6 अप्रैल 2022 को राज्यसभा में पारित किया गया है अतः यह दिल राष्ट्रपति के पास हस्ताक्षर के लिए जाएगा और फिर इसे कानून का दर्जा मिल जाएगा।यह अपील थर्ड डिग्री समाप्त कर, वैज्ञानिक प्रमाण जुटाने, फॉरेंसिक क्षमता बढ़ाने, दोष सिद्ध की दर बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है। 

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के अनुसार संसद में केंद्रीय गृह मंत्री ने बिल पर चर्चा के जवाब में कहा,बिल लाने का मकसद एक ही कानून व्यवस्था का राज स्थापित किया जाये मानवाधिकार कभी एकतरफा नहीं हो सकता है। स्वतंत्रता का उपयोग दूसरे के स्वतंत्रता का हनन करके नहीं होना चाहिए, जो लोग कानून के भरोसे अपना जीवन जीना चाहते हैं, वर्तमान दौर में पुराना कानून पर्याप्त नहीं है। इसलिए विधि आयोग की तरफ से इसकी सिफारिश की गई थी। उन्होंने कहा कि विधेयक का उद्देश्य 100 साल पुराने कानून में तकनीकी प्रगति को शामिल करके जांच प्रक्रिया को मजबूत करना है। मौजूदा कानून, जो ब्रिटिश काल के दौरान बनाया गया था, आधुनिक समय में पर्याप्त नहीं है। प्रस्तावित कानून का उद्देश्य अपराधियों की सजा दर को बढ़ाना है।

उन्होंने कहा कि दोषसिद्धि की दर बढ़ाना, फॉरेंसिक क्षमता बढ़ाना, थर्ड डिग्री खत्म कर वैज्ञानिक प्रमाण जुटाना, डाटा को निश्चित प्रक्रिया के तहत इस्तेमाल करना इस बिल का चार उद्देश्य हैं। आपराधिक प्रक्रिया पहचान विधेयक पर गृह मंत्री ने कहा कि हमारा कानून अन्य देशों की तुलना में सख्ती के मामले में कुछ नहीं है। दक्षिण अफ्रीका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, अमेरिका जैसे देशों में अधिक कड़े कानून हैं, यही वजह है कि उनकी सजा की दर बेहतर है। 

उन्होंने कहा कि क्या हम आगे नहीं बढ़ना चाहते? इस बिल में गंभीर अपराधों में शामिल आरोपियों के बायोमेट्रिक इंप्रेशन लेने का अधिकार पुलिस को दिया गया है। इस बिल की जरूरत इस वजह से है क्योंकि हमारे देश में आधे से ज्यादा गंभीर मामलों में अपराधी सिर्फ इस वजह से छूट जाते हैं, क्योंकि सबूतों में कहीं ना कहीं कमी रह जाती है और यह कानून बनने के बाद पुलिस को अपनी जांच को और सबूतों को और पुख्ता करने में मदद मिलेगी । 

यह बिल हर मामले के लिए नहीं लाया गया, बल्कि उन मामलों के लिए लाया गया है जहां पर धाराएं गंभीर होती हैं। इस बिल को लाने का मकसद दोषियों को सजा दिलवाने का है ना कि किसी बेगुनाह इंसान को परेशान करने का। उन्होंने कहा कि आज के समय में ऐसा लगता है कि पुराना कानून पर्याप्त नहीं है, इस बिल को संसद में पेश करने से पहले विधि आयोग ने इसकी संतुति भी दी है। उन्होंने कहा कि यह संशोधन इस वजह से किया जा रहा है कि गंभीर अपराधों में शामिल लोग सबूतों के अभाव में बरी ना हो जाएं। हत्या के मामले में निचली अदालत में महज 44 फीसदी लोगों को सजा मिल पाती है, बाल अपराध के मामलों में 37 फ़ीसदी मामलों में ही सज़ा हो पाती है।अलग अलग देशों का जिक्र करते हुए शाह ने बताया कि कैसे वहां पर कानून सख़्त हैं और उसकी वजह से दोषियों को सजा मिलती है।

वहीं इस बिल पर बोलते हुए विपक्ष के वरिष्ठ नेता  ने कहा कि मुझे दुख है ये बिल संविधान को तोड़ रहा है। इस बिल को लाने से पहले कोई सुझाव नहीं लिया गया है, उन्होंने  कहा कि मेरे सहयोगी लगातार इस बिल को सेलेक्ट कमेटी में भेजने की बात कर रहे हैं और मेरे हिसाब से इसमें कुछ गलत नहीं है।

इस बिल के इतिहास की करें तो यह 1973 में अधिनियमित किया गया था और 1 अप्रैल 1974 को लागू हुआ था। इस कानून में अपराधों के मामलों में पुलिस प्रसाशन तथा न्यायालयों के द्वारा जो प्रक्रिया अपनायी जाती है उसके बारे में बताया गया है।  इसी कानून में बताया गया है की अपराध के विचारण से सम्बंधित कौन कौन से कोर्ट होंगे। पुलिस किसी आपराधिक मामले में किसे गिरफ्तार कर सकती है ? कैसे गिरफ्तार करेगी? किस तरह से गिरफ्तार करेगी ?अगर अपराधी या गवाह न्यायलय के बुलावे के बाद भी कोर्ट न पहुंचे तो क्या प्रक्रिया अपनायी जाएगी? किस अपराध के सम्बन्ध में एफआईआर दायर की जा सकती है और किस मामले में नहीं? न्यायलयों में ट्रायल कैसे होगा? कोर्ट फैसला जब देगा तो उसमे क्या क्या होगा और क्या प्रक्रिया अपनायी जाती है। अपील में किस कोर्ट में और कितने दिन में जाना होगा? अगर गिरफ्तार हो गए हैं और जेल में हैं तो जमानत आदि की प्रकिया आदि इसी कानून में दिए गए हैं।

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता संशोधन बिल 2022 संसद के दोनों सदनों में पास, अब कानून बनेगा। थर्ड डिग्री समाप्त कर वैज्ञानिक प्रमाण जुटाने, फॉरेंसिक क्षमता बढ़ाने, दोषी सिद्ध की दर बढ़ाने में संशोधित यह बेल की महत्वपूर्ण भूमिका सिद्ध होगी। 

आपराधिक प्रक्रिया संहिता में अपराधों के मामलों में पुलिस प्रशासन और न्यायालयों द्वारा जो प्रक्रिया अपनाई जाती है उसमें संशोधन से दोष सिद्दी की प्रतिशत बढ़ने की संभावना हैं।

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