पर्यावरण से ही सुरक्षित है मानव जीवन

स्नेहा दुधरेजीया 

पर्यावरण यानी हमारी आसपास का आवरण। हमारी चारों ओर लिपटा हुआ आवरण। "परि" मतलब आसपास और आवरण यानी लिपटा हुआ आच्छादित। 

नुष्य जीवन सहित समस्त जीव सृष्टि जिस पर आधार रखती हे, ऐसा संपूर्ण जैविक एवं अजैविक माध्यम के साथ की पुरी कुदरती प्रक्रिया और उसके फलस्वरूप जो हे उसे पर्यावरण कहते हे। 

पर्यावरण से हमारा अस्तित्व जुडा हुआ हे। टीका हुआ हे। उसके बिना प्राणियों के अस्तित्व की कल्पना हम नहीं कर सकते। पर्यावरण का दूषित होना ईन्सानो के लिए बहुत बडा खतरा साबित ह़ो सकता हे। एक और हम स्वस्थ, तंदुरुस्त जीवन की कल्पना करते हे, दूसरी और हम ही उसका संतुलन बिगाड़ने पर तुले हे। 

आज के युग मे मनुष्य अवकाश तक पहुंच चुका हे। हम सोच भी  ना सकें इतने बडे मशीन खोजे गये हे, जो काम ईन्सान करता था उसका स्थान अब मशीनों ने ले रखा हे। समय गति के साथ बह रहा हे, सभी को  कम समय मे ज्यादा चाहिए। 

औद्योगिक प्रगति  भी प्रदूषण की समस्या को बढावा दे रही हे, अगर अभी भी ना समझे  तो ये समस्या विकराल रूप धारण कर सकती हे। बाग अगर ,पैड,पौधों, फलों, फूलों से भरा, हरियाला ह़ो तो सभी के मन क़ो लुभाता हे, वहां जाकर मन प्रफुल्लित हो जाता हे। सोचो कि अगर ये पेड़ पौधे रहे ही नहीं तो क्या होगा ?

लेकिन सिर्फ बातें करने से  कुछ भी हासिल नहीं होता, उसे आचरण मे ढालना पडेगा। हम प्रकृति की रक्षा करेंगे, प्रकृति हमारी रक्षा करेगी। 

वर्तमान समय मे हमारे सामने कई मानव सर्जित एवं कुदरती वैश्विक समस्याओ ने कई गंभीर  प्रश्न खडे किए हे। नजर करें, तो पर्यावरण क़ो दूषित करने मे "प्रकृति का संतुलन बिगाड़ने मे एक मात्र हम हे"!आधुनिकता एवं ज्यादा से ज्यादा सफलता की ओर जाने की  मानों होड सी लगी हुए हे। पर्यावरण हमारी आसपास की हवा को संतुलित रखता हे हमारी जरूरी चीजें पर्यावरण से मिलती हे फिर भी हम उसके महत्व को जानना नहीं चाहते या ...आँख बीच कान करते रहते हे। जिस की आड असर हम अपने आप मे भी देख सकते हे। हम अच्छे दिखे उसके लिए हम बहुत कुछ करते हैं तो हमारा पर्यावरण जिससे हम जीवित हे वो भी अच्छा दिखे उसके लिए  हमें पेड़ लगाने चाहिए

..प्राचीन  समय मे लोग कितना भी लंबा रास्ता हो माईलो चलते थे फिर भी साँस नहीं फुलती थी, थकान महसुस नहीं होती थी अब .....हमें खयाल आ रहा हे,...क्या खोने जा रहें हे हम! पहले अनाज, फलों, सब्जियां   उगाने  मे देशी खाद का  उपयोग होता था। जबकि, हाल मे ढेरों सारी दवाई या डाल कर पकाया जा रहा हे  जिस की वजह से हमारा स्वास्थ्य बिगड रहा हे। 

हमें फायदा नहीं हे किन्तु डाक्टरों, फार्मा कंपनियों, की आमदनी मे उफान आया हे।  कहते हे कि सम्राट अशोक ने, वन्य जीवों की हत्या या शिकार पर प्रतिबंध लगाया था। पर्यावरण मे सुक्ष्म जीवों से लेकर सभी तरह के छोटे मोटे पशु, पंखी, वनस्पति से लेकर पैड, पौधे, नदी, तालाब, समुद्र, ये सभी कुदरत की अनमोल संपत्ति हे। जिन्हें सुरक्षित रखना हम सब की जिम्मेदारी हे। और एक बात जिनके बंगलो, मकान मे A.C., कुलर लगें हे, उन्हें गरीब की परेशानी या पर्यावरण की एहमियत मालुम ना हो !! पर कोरोना के वक्त तो सभी को पेड़ पौधों की अहमियत का अहसास हो गया था।कहीं पर रुपए देने पर भी ऑक्सीजन नहीं मिल रहा था। ये ऑक्सीजन की कमी पेड़ पौधे काटने की वजह से ही है।हम इस बात को झुठला नहीं सकते कि  ऑक्सीजन की कमी हुई है तो इसके जिम्मेदार भी कहीं न कहीं हम है।अगर पेड़ पौधों की संख्या ज्यादा होती तो शायद ऑक्सीजन की कमी ही महसूस न होती  और कोरोना जैसी महामारी में हमें बड़े महंगे दामों में ऑक्सीजन सिलेंडर लेने की भागादौड़ी न करनी पड़ती उसी ऑक्सीजन की वजह से हमने और हमारे आसपास के लोगों ने कई स्वजनों को गुमाया था। अगर पेड़ पौधे लगाने से ऑक्सीजन मिलता है तो हमें पेड लगाना ही चाहिये। यहाँ सिर्फ दिखावा करने के लिए या विश्व पर्यावरण के दिन 1 वृक्ष लगा के फ़ोटो खींच के सोसयल मीडिया पर डाल देने से हम हीरो नहीं बन जाएंगे और अगर बन भी गए तो ऐसी झूठी वाहवाही के लिए हम अपने आप को कभी माफ नहीं कर पाएंगे।

पेड़ लगाने से कुछ नहीं होता पेड़ लगा ने के बाद उसकी देखभाल भी करनी उतनी ही ज्यादा ज़रूरी बनती है हमारी जिम्मेदारी। कई बार तो कुछ लोग पेड़ उगा तो देते हैं फिर कुछ दिनों बाद वो सूख जाते हैं क्यूंकि उसे पानी नहीं मिलता कहने का मतलब यह है कि अगर पेड़ उगाओ तो उसकी पूरी देखभाल करो कि वो भी फल फूल कर बड़ा होकर किसी को छाव देने के काम आए। 

एक संकल्प करना चाहिए कि हमारे जन्मदिन या कुछ भी अच्छे शुभ कार्य की शुरुआत करने पर हम पेड़ लगाएंगे और उसकी देखभाल भी करेंगे ताकि हमारी आनेवाली पीढ़ी ये देखे और वो भी यह काम करे।अगर प्रकृति हमारी रक्षा करती है तो हम क्यों उसकी रक्षा नहीं कर सकते। इस लिए विद्वान लोग बार बार कहते है पर्यावरण से ही सुरक्षित है मानव जीवन। पशु, पंखी, तथा मेहनत करनेवालों को एक नीम या बरगद के पेड की छाँव मिल जाय तो उनके मन मस्तिष्क मे जो ठंडक मिलती हे, हमारी सोच से परे हे। 

एक पेड एक साल मे 20 किलो मीटटी जमीन से शोषण करता ह़े 700 कीलो ऑक्सीजन  पैदा होता हे। एक पैड से चार डीग्री तक का तापमान कम होता हे।80 किलो, पारा, लिथियम, लीड जैसी जहरीली धातु के मिश्रण को खींचने की क्षमता पैड मे होती हे। पेड आवाज की क्षमता को  दबाकर रखता हे। पैड पौधे  कार्बन डायोक्साइड लेते हे और हमें  ऑक्सीजन  प्रदान करते हे।                    आओ हम सभी संकल्प करें की हम सब मिलके प्रकृति का संवर्धन करें, उसकी रक्षा करें, जतन करें। तब  फलस्वरूप हमेशा हमारी रक्षा होगी.. छोड़ मे रणछोड़  श्रीकृष्ण दिखाई देंगे।

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