भारतीय संस्कृति नु वैश्विक प्रभुत्व


हरिभाई सोलंकी (ऊना, गिर - सोमनाथ, गुजरात)

भारतीय सभ्यता विश्व की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक हैं, जो मिश्रित विविधताओं और समृद्ध संस्कृतियों का संघ हैं। भारत का एक अपना महान इतिहास रहा है, जिसमे सिंधु घाटी सभ्यता, विभिन्न धर्मों के उद्गम और पुराण जैसे ग्रंथ भारत की प्राचीन विरासत है। हमारे पुराणों में “ वसुधैव कुटुम्बकम “ ( पूरा विश्व एक परिवार है ) को महत्त्वता दी गई हैं। यह दो शब्द हमारे संस्कृति और भारतीय नीति को आयाम देते हैं। 

आज विश्व बहुपक्षीय प्रकृति की ओर बढ़ रहा है और एक देश विभिन्न देशों पर निर्भर रहता है। 19 वी सदी के अंत तक पूरा विश्व कई गुटों में बंटा हुआ था। यह गुट अपने हितों को सर्वप्रथम रखकर अपनी विदेश नीति को आयाम देते थे तथा उसे अमल में लाते थे। इस बात की पुष्टि होती है यूएसए और सोवियत संघ के बीच हुए शीत युद्ध से, जहां विश्व के अधिकतर देश दो गुटों में बट गए थे। द्वितीय विश्व युद्ध (१९४५) के बाद आधुनिक वैश्वीकरण शुरुआत होती है और विश्व बहुपक्षीय संरचनाओं में ढलने लगता है।

जहां एक ओर पूरा विश्व आधुनिकरण की ओर बढ़ रहा था  वही दूसरी ओर भारत गुलामी के जंजीरों को तोड़कर एक स्वतंत्र देश बना। जिन सिद्धांतों ( अहिंसा, शांति, राष्ट्रीय हित सर्वोपरि ) पर चल कर आज़ादी हासिल की थी, आज भारत की विदेश नीति उन अनेक सिद्धांतों को समेटे हुए हैं। 

भारत  हमेशा गुटनिपेक्षता को सर्वोच्च प्राथमिकता देता है। भारत की विदेश नीति के प्रमुख रूप से तीन आधार स्तम्भ है – शांति, मित्रता और समानता। सन् 1954 में भारत और चीन के बीच तिब्बत क्षेत्र को लेकर पंचशील समझौते पर हस्ताक्षर किया गया था। यह समझौते का अर्थ है आचरण के पाँच नियम जो है • एक दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का  पारस्परिक सम्मान 

  • • पारस्परिक आक्रमण न करना 
  • • एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना 
  • • समान और परस्पर लाभकारी संबंध
  • • शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व

भारतीय विदेश नीति हमेशा अपने राष्ट्रीय हितों की पूर्ति करने की ओर अग्रसर रही है और मानवीय मूल्यों पर आधारित रही है। लेकिन समय के साथ इसमें कई बदलाव भी आए है और कभी-कभी अपने सैन्य तथा आर्थिक हितों को लेकर भारत आलोचनाओं का शिकार भी रहा है। 

राष्ट्रीय हित में किए गए परमाणु परीक्षण के बाद हमें प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता था। 2014 से पहले भारत अनेक समस्याओं से जूझ रहा था। भारत की आर्थिक, सामाजिक, वैश्विक नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा पर हमेशा सवाल उठाए जाते थे और इसका मुख्य कारण उस समय की सरकार की विफल नीतियां थी। 2008 होटल ताज हमला, 2G घोटाला, देश में सांप्रदायिक दंगे इसके कई उदाहरण हैं। जिसकी वजह से भारत की छवि दुनिया में बहुत खराब हो रही थी। वहीं 2014 के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में देश ने न सिर्फ अपनी नीतियों को मजबूत किया बल्कि दुनिया मे भारत ने एक नई साख छोड़ी है। उन्होंने विदेश नीति में कई सकारात्मक बदलाव लाए हैं और राष्ट्रीय हितों के साथ साथ व्यापार एवं वाणिज्य को भी अपने नीतियों में महत्व दी है। 

राष्ट्रीय सुरक्षा की नीति को हमेशा सर्वोपरि रखा है। डोकलाम में भारत के द्वारा की गई कार्यवाही और साल 2016 में उरी आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ़ सर्जिकल स्ट्राइक भारतीय नीति के प्रमुख उदाहरण हैं। वर्तमान में आर्थिक हितों के संदर्भ में भारत अपनी निर्भरता दूसरे देशों से कम कर रहा है और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दे रहा हैं। 

रूस और अमेरिका के तनावों बीच भारत अपनी नीतियों से दोनो देशों के साथ संतुलन बनाए रखने को महत्व दे रहा है। यह हमारे गुटनिरपेक्ष सिद्धांतों को दर्शाता है। आज लगभग दो साल से पूरा विश्व कोरोना महामारी से जूझ रहा है। इस महामारी के कारण सभी देश संकट और चुनौतियों का सामना कर रहे है खासकर विकासशील तथा अल्प – विकसित देश। महामारी के कारण आर्थिक रूप से कमज़ोर देश तथा पड़ोसी देशों के लिए कोरोना टीका और भी आवश्यक हो जाता है। 

भारत ने इस जिम्मेदारी को समझते हुए अपने पड़ोसी,  प्रमुख साझेदार और कम आय वाले  देशों को टीका ‘ वैक्सीन मैत्री अभियान के तहत पहुंचाने का काम किया जा रहा  है। जनवरी 2021 मे भारत ने वैक्सीन मैत्री पहल शुरू की और देश में बने टीकों को उपहार तथा आपूर्ति के लिए एक प्रमुख कूटनीतिक प्रयास है। अभी तक 90 से ज्यादा देशों तक वैक्सीन सफलतापूर्वक  पहुंचाए गए है जिन मे से प्रमुख देश बांग्लादेश, म्यांमार, नेपाल, भूटान, मालदीव , श्रीलंका, ब्राज़ील और मॉरिशस है। यह भारत को पड़ोसी देशों और संपूर्ण विश्व के साथ अपनी राजनयिक संबंधों तथा विदेश नीति को मजबूती से स्थापित करेगा। 

इस कदम से भारत को चीन की तुलना मे रणनीतिक बढ़त मिलेगी। चीन के हमारे पड़ोसी देशों पर बढ़ते दबदबे को देखते हुए, इस अभियान की अहमियत और भी बढ़ जाती है। इस समय में विकसित देश, ‘राष्ट्र सर्वप्रथम’ की नीति पर चल रहे है, वही भारत ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की राह पर हैं।

हाल ही मे रूसी सेना द्वारा यूक्रेन पे हमलों का सिलसिला शुरू किया गया, जिससे यूक्रेन मे युद्ध छिड़ गया हैं। भारत के संबंध दोनों देशों के साथ बहुत मजबूत है। लेकिन रूस भारत का पुराना और भरोसेमंद मित्र देश रहा है जिसने कई बार भारत की मदद की है फिर चाहे संयुक्त राज्य परिषद में भारत के समर्थन में वीटो का इस्तेमाल हो या १९७१ मे भारत -पाकिस्तान युद्ध में जहां पूरा विश्व भारत के खिलाफ खड़ा था वहीं रूस एक अकेला देश भारत के साथ खड़ा था। इसके बावजूद भारत ने अपना पक्ष स्पष्ट किया है कि वो युद्ध के पक्ष में नहीं है और दोनों पक्षों को शांति वार्ता से अपने मतभेदों को हल करना चाहिए। 

आज इस संकट में पूरी दुनिया दुविधा में है। रूस यूक्रेन संघर्ष पर रूस के खिलाफ़ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और संयुक्त राष्ट्र महासभा मे प्रस्ताव लाया गया। इस सभी प्रस्ताव पर वोटिंग करने से भारत ने परहेज तथा संयम रखी। जहाँ इस मामले में तटस्थ रहना रूसी खेमें मे जाना लगता है लेकिन भारतीय नेतृत्व ने अपने फैसले को लेकर दृढ़ता दिखाई है। 

भारत ने गुटनिपेक्षता का पालन करके एक बार फिर अपने नीति को स्थापित किया है। यूक्रेन में छात्रों समेत करीब 20000 भारतीय फंसे थे। ऑपरेशन गंगा इन सभी भारतीय नागरिकों को वापिस लाने के लिए निकासी अभियान है। 

भारत सरकार ने यूक्रेन के पड़ोसी देश रोमानिया, हंगरी, पोलैंड, स्लोवाकिया और मोलदोवा की सीमाओं के रास्ते से फंसे भारतीयों को निकलने का काम कर रही है। इस संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने यूक्रेन रूस के समकक्ष से बात कर मानवता के लिए संघर्ष विराम करने का निवेदन किया। इसका सकारात्मक परिणाम आया और रूस ने संघर्ष विराम का ऐलान किया ताकि नागरिकों को बाहर निकला जा सके। यह भारत के विदेश नीति के प्रभाव को दिखाता है। अब तक 18000 से ज्यादा नागरिकों को युद्धग्रस्त यूक्रेन से सुरक्षित रूप से निकला गया है।

दुनियाभर में 201 देशों के साथ भारत के राजनयिक संबंध  हैं। भारत वैश्विक  मामलों में प्रभाव छोड़ रहा है और इसे एक उभरती हुई महाशक्ति के रूप में स्थापित किया है। 24 फरवरी से रूस-यूक्रेन युद्ध चल रहा है और भारत में यूक्रेन के राजदूत ने प्रधानमंत्री मोदी से अपील भी की थी। उन्होंने कहा था, “ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दुनिया के सबसे शक्तिशाली और सम्मानित नेता है यदि वो रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से बात करते है तो उनको उम्मीद है कि वे जवाब देगें।

“यह भारत के वैश्विक संबंधों के ऊपर बढ़ते प्रभाव की पुष्टि करता हैं। अमेज़न के संस्थापक और दुनिया के तीसरे सबसे अमीर व्यक्ति ने कहा था “ 21वीं सदी भारत की है। “ साल 2014 से मोदी जी ने भारत की ‘पूर्व की ओर देखो’ नीति को बड़ा आयाम देते हुए ‘पूर्व में काम करो’ नीति में बदल दिया है। जिसका मुख्य उद्देश्य आसियान देशों के साथ आर्थिक, रणनीतिक और सांस्कृतिक संबंधो को बढ़ावा देने के लिए राजनयिक प्रयास है। इस पहल से भारत को हाल में ही सफलता भी मिली है और वियतनाम, फिलिपींस देशों के साथ सैन्य तथा सुरक्षा पर सहमती बनी। 

आज आवश्यक हैं कि भारत अपने विदेश नीतियों को नया आयाम दे। यह स्पष्ट है कि मोदी सरकार ने विभिन्न विषयों को विदेश नीति में जोड़ा है जैसे भारत प्रशांत क्षेत्रीय संतुलन, वैक्सीन  में सहयोग तथा जलवायु परिवर्तन को कम करना व व्यापार बढ़ाना प्रमुख क्षेत्र हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि अगला दशक भारत विदेश संबंधों में ‘परिवर्तनशील काल’ होगा

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