किसान आंदोलन की दहलीज पर लोकसभा चुनाव-2024

  • लोकसभा चुनाव 2024 की दहलीज पर किसान आंदोलन को बिना लक्ष्य 50 पार वोट शेयरिंग और 400 पार संकट..
  • राम मंदिर निर्माण का जोश लफरेज़ पार्टी से किसान आंदोलन का नारा?
  • किसान आंदोलन की रार-क्या 400 पार का लक्ष्य होगा तार-तार? 

स्वर्ण-वैश्विक स्तर पर दुनिया की सबसे बड़ी लोकतंत्र की प्रतिष्ठा का ग्राफ वर्तमान समय में जिस तरह से तेजी से ऊपर उठ रहा है, जिस तरह से भारत की विश्व जनबंधुता उभर रही है और उसका लक्ष्य 2047 विकसित भारत की ओर बढ़ रहा है, यह देखने वाला है दुनिया हैरान कर देने वाली। वही भारत में लक्ष्मी महापर्व मुहाने पर खड़ा है। यानी अप्रैल 2024 में महाराष्ट्र चुनाव शुरू हो सकते हैं। 

विज्ञापन लगभग मार्च में शुरू हो सकता है। लेकिन जैसे कई नॉमिनेशन देखने के लिए किसी खास पार्टी की जीत पक्की मन जा रही है और अबकी बार 50 नॉमिनेशन शेयर पार सहित 400 पार का नारा जा रहा है, जिसमें पार का नारा लग रहा है। 

यदि यूनाइटेड ने सहमति नहीं दी है तो 50 अल्पमत पार लक्ष्य पर ग्रहण लग सकता है, क्योंकि पंजाब, हरियाणा के कुछ राज्यों के स्टॉक पर सीधा असर दक्षिण से हो सकता है, तो वैसे भी बेहद कम उम्मीद है और केवल उत्तर के हिस्से 50 वोट का ग्रुप शेयरिंग और 400 क्रॉस बिजनेस नहीं लगता। 

एक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि किसानों की संख्या 72 करोड़ से भी ज्यादा है। 13 फरवरी 2024 को महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री की उत्तर प्रदेश यात्रा के लिए यात्रा जरूरी है। दिनांक 13 फरवरी 2024 को हमने किसान आंदोलन को टीवी चैनल के माध्यम से स्वयं आर के रूप में देखा, जिससे 400 पार का लक्ष्य या हो सकता है आज इसलिए हम मीडिया के सहयोग से इस लेख के माध्यम से चर्चा करेंगे, चुनाव करेंगे। 2024 में दिल्ली में किसान आंदोलन को बिना लक्ष्य 50 पार वोट शेयर और 40 पार संकट को खत्म करना होगा। 

किसान आंदोलन की राह पर भरोसा तो, चुनाव 2024 ठीक पहले किसान एक बार फिर न्यूनतम समर्थन मूल्य की मांग लेकर आंदोलन की राह पर उतरें। जिस समय राम मंदिर निर्माण के जोश से श्रमिक पार्टी अपनी पूरी वेग में आगे बढ़ रही थी और 400 से अधिक भव्यता का दावा कर रहे थे, किसान अपनी राह में विश्वास जता चुके हैं। ऐसा माना जा रहा है कि अगर यह मामला नहीं सुलझा तो पार्टी को नुकसान हो सकता है। 

तीन-तीन बड़े केंद्रीय मंत्री इस मामले को लेकर लगातार प्रयास कर रहे हैं, जिससे यह भी समझ आ रहा है कि पार्टी को भी नुकसान होने का खतरा है. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि अगर किसानों का आंदोलन पहली बार बड़े पैमाने पर आक्रामक हुआ तो बीजेपी को कितना नुकसान हो सकता है? 

राजनीति के कुछ लोगों का मानना ​​है कि अपनी खोई मंजिल हासिल करने के लिए अकाकी पंजाब दल के किसान नेताओं को पैसा और संसाधन देना इस आंदोलन को हवा दे रही है। यानी राजनीति में किसानों की प्रतिष्ठा सबसे ज्यादा हो रही है और किसानों का हित करने का इरादा कम है। 

इधर, आंध्र प्रदेश के राष्ट्रपति ने भी भारत जोड़ो न्याय यात्रा के एक कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ में सलाह दी है कि अगर कांग्रेस सत्ता में है, तो किसानों को धारा की कानूनी सलाह दी जाएगी। 

राहुल गांधी ने इसे पहली बार शेयर किया है। लेकिन अगर यह मामला राजनीति से प्रभावित होता है, तो किसान आंदोलन में नैतिक बल का नुकसान हो सकता है। इस आंदोलन का जनता पर असर कम हो सकता है। पिछली बार जब 2020-21 में किसान आंदोलन हुआ था, तब किसान संयुक्त मोर्चा के बैनर तले 40 से अधिक किसान नेता शामिल हुए थे। लगभग साल भर चलने वाले आंदोलन में किसानों ने कई स्टूडियो के बाद भी अपना आंदोलन जारी किया और अंततः 19 नवंबर 2021 को ट्राइलिम कृषि संयंत्रों को वापस लेने की घोषणा की गई।

हम किसानों की मुख्य भूमिका निभाते हैं तो (1) किसानों की सबसे खास मांग न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए कानून बनाना है। (2) किसान स्वामीनाथन आयोग की स्थापना को लागू करने की मांग भी कर रहे हैं। (3) आंदोलनकारी किसान कृषि ऋण माफ़ करने की मांग भी कर रहे हैं। (7) किसानों और 58 वर्ष से अधिक आयु के कृषि ऋणों के लिए पेंशन योजना लागू करके 10 हजार वर्ष प्रति माह पेंशन दी जाएगी। (8) प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में सुधार के लिए सरकार की ओर से स्वयं बीमा प्रीमियम का भुगतान करना, सभी बीमा कंपनियों को योजना का हिस्सा बनाना और नुकसान का आकलन करना, खेत की जमीन को एक इकाई के रूप में सीखना नुकसान का आकलन करना (9) भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 को उसी तरह से लागू किया जाना चाहिए और भूमि अधिग्रहण के संबंध में केंद्र सरकार की ओर से राज्य में दी गई विचारधारा को रद्द किया जाना चाहिए। गुणवत्ता में सुधार किया जाए। 

कांग्रेस और आम आदमी पार्टी समेत कई राजनीतिक विचारधाराओं ने किसान आंदोलन का समर्थन किया है..

अगर हम किसान पुलिस के बीच हैं तो पंजाब और हरियाणा के किसानों की संख्या पूरी करने के लिए दिल्ली की ओर से तेजी से बढ़ रहे हैं। केंद्र की क्यू सरकार जहां इस आंदोलन को शांत करना चाहती है, वहीं इसे हवा में जारी किया गया है। यही कारण है कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी समेत कई राजनीतिक विचारधाराओं ने किसान आंदोलन का समर्थन किया है

पंजाब और हरियाणा कांग्रेस के कई नेताओं ने तो यहां तक ​​साफ कर दिया है कि अगर किसानों को हमारी जरूरत है तो हम भी सिद्धांत पर उतरकर दिल्ली जाएंगे। खंड खंड चुनाव स्पष्ट, पुरातन प्रश्न यह है कि हरियाणा और पंजाब में किस दल को किसानों का साथ मिलेगा। इस मास्टर ने सबसे पहले बताया था कि हरियाणा और पंजाब के बड़े नेता किसान आंदोलन को लेकर क्या प्रतिक्रिया दे रहे हैं। दिनांक 13 फरवरी 2024 को भी पुलिस और किसानों के बीच हलचल जारी थी। 

धार्मिक संस्थान की शंभू सीमा के बाद पंजाब के किसानों की हरियाणा पुलिस से अवैध लूट हुई है, यहां गैस के गोले भी दागे गए हैं। सामने आया कि, पुलिस समुद्र तट पर गैस के गोले दाग रही है। जहां दिल्ली के किसान शंभु सीमा पर लगातार गैस के गोले दागे जा रहे हैं, वहीं किसान भी उग्र हो गए हैं, उन्होंने सीमा पर एक ओवरब्रिज की रेलिंग को भी तोड़ दिया है।

मूल रूप से यदि हम संपूर्ण विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम देखेंगे कि किसान आंदोलन की योजना में 400 पार का लक्ष्य तार क्या होगा? राम मंदिर निर्माण के जोश से लफरेज़ पार्टी ने किसान आंदोलन को दी चुनौती? लोकसभा चुनाव 2024 की दहलीज पर, किसान आंदोलन को बिना लक्ष्य 50 पिज्जा वोट शेयरिंग और 400 पार संकट को अंजाम देना होगा।



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