मोबाइल पर चढ़ता, मिटती जिंदगी का रंग

ये आधुनिकता है या संवेदनहीनता!

हेमन्त कुशवाहा

सामान्य तौर आजकल किसी भी जगह किसी भी स्थान पर किसी व्यक्ति के साथ कोई जघन्य वारदात का वाक्या घट रहा है या उसको पूरा अंजाम देने का प्रयास किया जा रहा है या कहीं कोई रेलवे ट्रेक पर आत्म हत्या करने जा रहा है या कहीं कोई सड़क पर दुर्घटना से हताहत होकर कोई व्यक्ति पड़ा और तड़प रहा है या कोई गाड़ी चलाने की असावधानी वश नदी, नहर व तालाब में गाड़ी सहित साथ डूब रहा है मर रहा है या कोई किसी बिजली के खंभे पर करंट से चिपका हुआ है या किसी घर में आगजनी पर फंसे परिवार को निकालने के बजाए  वहां पर मौजूद लोगों की संख्या में हर कोई अपनी-अपनी जेब से मोबाइल निकाल कर उसका लाइव विडियो बनाना शुरू कर देता है लेकिन उनमें से कोई भी व्यक्ति किसी अपराधी का दुस्साहस तोड़ने व किसी को आत्म हत्या करने से रोकने व डूबते व मरते हुए व आग से बचाने का कोई प्रयास नहीं करता है क्या ये आधुनिकता है या संवेदनहीनता जहां जिंदगी का मूल्य इस तरह आंका जा रहा है।

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