सृजन शक्ति वेलफेयर सोसायटी द्वारा* देश व वचन के लिए पुत्र प्रेम त्यागने वाली *माँ* का हुआ  मंचन। एक सैनिक की पत्नी के बलिदान को दर्शा गया ये नाटक।

महान कथाकार मुंशी प्रेमचंद जी की  लिखी प्रसिद्ध कहानी *माँ* का मंचन  संस्कृति विभाग उत्तर प्रदेश के सहयोग से सृजन शक्ति वेलफ़ेयर सोसाइटी , लख़नऊ  द्वारा लालबाग पार्क , हिंदी सभा ,सीतापुर में     मंचन किया गया । जिसे बहुत ही मज़बूती  के साथ  दर्शको  को बांधे रखने का मार्मिक अभिनय किया रंगकर्मी व इस नाटक की मुख्य भूमिका निभा रहे  रंगकर्मी डॉ सीमा मोदी  व नवनीत मिश्रा ने। नाट्यलेखन व  निर्देशन के के अग्रवाल ने किया।

मुख्य अतिथि व दीप प्रज्वलन ........

"मां" मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित एक अत्यंत मार्मिक कहानी है, 

जिसमें अपनी देश के प्रति निष्ठा एवं स्वतंत्रता सैनानी पति को दिये गये वचन को निभाने के लिए एक भारतीय नारी अपने पुत्र प्रेम का बलिदान कर देती है।

"करुणा"( डॉ सीमा मोदी)  आज, सात वर्षों की सज़ा काट कर, अंग्रेज़ों की जेल से लौट रहे, अपने स्वतंत्रता सेनानी पति आदित्य ( नवनीत मिश्रा)  की  प्रतीक्षा कर रही है। उसकी कल्पना है कि इन्कलाब ज़िंदा बाद के नारों के बीच, भीड़ से घिरे आदित्य को अंग्रेज़ पुलिस ससम्मान घर लेकर आ रही होगी। किंतु शाम होते होते, घर पहुंचता है, तपेदिक की बीमारी से ग्रसित, जेल की यातनाओं से टूटा हुआ, अकेला आदित्य। उसके साथ न तो कोई संगी साथी है और न ही अंग्रेजी पुलिस का कोई आदमी।

घर पहुंच कर आदित्य अपने पुत्र प्रकाश ( आराध्या)को भी एक वीर स्वतंत्रता सैनानी बनाने का वचन लेकर करुणा की बाहों में संसार त्याग देता है। 

बड़ा होकर प्रकाश ( कबीर) यूं तो एक कुशाग्र एवं मां से स्नेह करने वाला पुत्र है किंतु देश सेवा एवं सामाजिक कार्यों में उसकी कोई रुचि नहीं है। यहां तक कि वो मां की इच्छाओं के विरुद्ध, अंग्रेज़ी सरकार के वजीफ़े पर, उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए विलायत चला जाता है। पुत्र की इस अवहेलना एवं जीवन के संघर्षों से व्यथित करुणा धीरे धीरे टूटती  जाती है। 

प्रकाश को पति की आशाओं का पुत्र न बना सकने से आहत करुणा, अपने को आदित्य का दोषी मानती है एवं प्रकाश से अपने सारे संबंध तोड़ लेती है। यहां तक कि उसके द्वारा भेजे गये पत्रों को भी बिना पढ़े फाड़ कर फेंक देती है। 

   पुत्र प्रेम से विचलित  करुणा, एक रात प्रकाश के फाड़े हुए पत्र को जोड़ने का प्रयास करते करते सो जाती है और स्वप्न में उसको मजिस्ट्रेट के रुप में, अंग्रेजी सरकार से विद्रोह के आरोप में अपने पिता को मृत्युदंड सुनाते हुये देखती है।

 इस भयानक स्वप्न से सिंहरित करुंणा चीख कर उठ बैठती है और रात भर में जोड़े हुए पत्र को पुनः फाड़कर अपने पुत्र को "मृत्यु दण्ड " सुनाती है। .मंच पर  कलाकार नवनीत मिश्रा ने मुख्य स्वतन्त्रता सेनानी की भूमिका निभाकर किरदार को जीवंत कर दिया , बेटे की भूमिका में छोटा प्रकाश आराध्या ,बड़ा प्रकाश अहमद रशीदी थे, घर का सेवक अनन्या सिंह ,भिखारी  की भूमिका विनायक तिवारी  ने निभाई।पुलिस की भूमिका में  , पवन विक्रम , आशु चौधरी थे वहीं  क्रांतिकारी की भूमिका में अंशुमान श्रीवास्तव, रॉनी शुक्ला, विजय मिश्रा,अंकित मिश्रा  मुस्कान , आनन्द ।

प्रकाश परिकल्पना व सेट शैलेंद्र विश्वकर्मा  का  रहा व संगीत परिकल्पना व  संचालन प्रखर श्रीवास्तव ने  की। वेशभूषा में  अनन्या सिंह  ,रूप सज्जा बिमला बरनवाल ,प्रस्तुति नियंत्रक सौम्या मोदी का रहा।प्रस्तुत्त कर्ता शुभम आदित्य व डॉ सीमा मोदी ।  सह निर्देशन नवनीत मिश्रा का रहा ।सम्पूर्ण परिकल्पना व निर्देशन के के अग्रवाल का रहा।

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