भेड़ों की परिपाटी

हेमन्त कुशवाहा

अगर कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के बारे में अपनी आदत वश उसकी शख्सियत व छवि को धूमिल करने के इरादे से बनावटी व उकसावे की बातें करता है तो क्या दूसरे व्यक्ति को उसका यकीन कर लेना चाहिए? 

...नहीं लेकिन यहां ज्यादातर ऐसा ही होता है चूंकि ऐसे सरीखे मामलों में लोग बहुत जल्दी दूसरों का यकींन कर दूसरों से अकारण बुराई लेते हैं शायद निंदा का रस ही ऐसा होता है जिसका स्वाद हर कोई चखना चाहता है। लेकिन उसको ये याद रहे कि यह उसकी विवेकहीनता है 

ना कि विवेकशीलता  चूंकि समझदारी का एक सर्व उचित मापदंड यह होता है कि बेशक कहने वाला कोई भी हो और कुछ भी कहता फिरे लेकिन सुनने वाला समझदार होना चाहिए अन्यथा उसे भेड़ों की परिपाटी व उन्हीं के पद-चिन्हों पर ही गिना जाएगा।

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