सभी प्राणी सुखी हो -डॉ एम एल परिहार

रक्खासुत्तबंध दिवस

बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद रक्खासुत्तबंध दिवस के  दिन उनके उपदेशों के 84 हजार सुत्रों को पहली बार संकलित कर सुरक्खित रखा था....

भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद सुभद्द भिक्षु, जो थोड़े दिनों पहले ही संघ में शामिल हुआ था. वह संघ के कड़े अनुशासन नहीं मानता था. वह खुश हुआ और बोला चलो अच्छा हुआ. अब तो बुद्ध नहीं रहे, हम अपनी मर्जी के मालिक है. 

अब कोई रोक टोक करने वाला नहीं है. यह देख वरिष्ठ भिक्षुओं को चिंता हुई कि 45 वर्ष तक बुद्ध ने जो उपदेश दिए, उन्हें सिर्फ याद रखकर आगे बढाया जा रहा है यदि इन्हें संकलित कर सुरक्षित नहीं किया गया तो बहुत घालमेल हो जाएगी, भिक्षु मनमानी पर उतर आएंगे और कुछ ही साल बाद बुद्ध वाणी का मूल स्वरूप भी बिगड़ जाएगा. 

इसके लिए तथागत के महापरिनिर्वाण के तीन महीने बाद उनके परम अनुयायी मगध सम्राट अजातशत्रु ने राजगृह की विशाल सप्तपर्णी गुफा में पहली बौद्ध संगीति, संगायन (कॉन्फ्रेंस) आयोजित की. इसमें पांच सौ सीनियर भिक्षुओं ने भाग लिया. 

भिक्खु महाकश्यप ने अध्यक्षता की. गृहस्थ, भिक्षु व भिक्षुणी के विनय (अनुशासन के नियम) के विद्वान अरहत भिक्खु उपालि को प्रधान चुना गया. क्योंकि विनय धम्म का आधार है. उसी समय अरहत हुए बुद्ध के सहायक भिक्खु आनंद को बुद्ध की देशनाओं के सारे सुत्त याद थे. 

उपदेशों को याद रखने वाले गणक भी मौजूद थे. उपालि ने विनय पिटक और आनंद ने सुत्त पिटक को लिपिबद्ध व संकलित किया और सुरक्षित रखा. अभिधम्म पिटक बाद में आया. श्रावण पूर्णिमा को शुरू हुई यह बुद्ध संगायन सात महीने तक चली. बौद्ध धम्म इतिहास में यह बहुत महत्वपूर्ण दिन है क्योंकि पालि त्रिपिटक ग्रंथ का पहला स्वरूप इसी दिन तैयार हुआ था.  

भगवान बुद्ध की शिक्षाओं के सुत्र (सुत्त) मानव कल्याणकारी है. यह वर्षावास का समय है भिक्षु चारों ओर गृहस्थों को धम्म देशना देते है. सुत्तों का पठन कर नए उपासकों को सुखी जीवन के लिए पंचशीलों की पालना व मंगल सुत्त के प्रतीक के रूप में सफेद धागा (सुत्र) देते थे. जिसे उपासक गले में डाल देते थे. बाद में हाथ पर भी बाधने लग गये.  

सदियों बाद जब भारत में बुद्ध की शिक्षाओं को भूला दिया गया तो ये गौरवशाली परम्पराएं भी अपना मूल स्वरूप खो बैठी और दूसरों ने इस परम्परा को' रक्षाबंधन' से जोड़ दिया. कभी कोई और कहानी गढ दी. और कुछ ही सौ साल पहले धर्म व बाजार ने अपने स्वार्थ के लिए इस दिन को भाई द्वारा बहन की  रक्षा से जोड़ दिया. जबकि गांवों में तो आज भी इस दिन खेती व अन्य धंधों के औजारों व पशुओं को भी साधारण धागा ही बांधा जाता है.  

बुद्ध की शिक्षाओं में स्त्री चाहे वह मां, बहन, पत्नी कोई भी हो उसे कमजोर नहीं माना जाता है जिसकी रक्षा के लिए एक दिन चुनना पड़े. सभी को समान अधिकार हैं.

बौद्ध इतिहास में श्रावण पूर्णिमा का यह दिन बहुत महत्वपूर्ण है. इस माह का नाम श्रावण भी ऐसे ही पड़ा .श्रावण यानी बुद्ध के सुत्रों का श्रवण या सुनना. इस दिन बुद्ध वाणी के संकलन व संरक्षण के कारण ही आज ढाई हजार साल बाद भी पूरी दुनिया में पालि त्रिपिटक उसी मौलिक रुप में हैं. हर देश में पालि में ही पढा जाता है और मानव जगत का कल्याण कर रहा हैं. 

दूसरी बौद्ध संगीति 383 ईपू.सम्राट कालासोक. वैसाली, तीसरी 250 ईपू. सम्राट असोक.पाटलिपुत्र, चौथी 102ई. कनिष्क. कश्मीर, पांचवीं 1871 राजा मिंडान, बर्मा और छठी संगीति बुद्ध शासन के ढाई हजार साल होने पर 1954 में रंगून में हुई थी जो दो साल तक चली और बाबासाहेब आंबेडकर ने उसमें शिरकत की थी. सबका मंगल हो

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