ओ मेरे कृष्ण कन्हैया

 

डा बीना सिह

ओ मेरे कृष्ण कन्हाई

अब एक बार आ जाओ

हम सबकी बिकट व्यथा

धरा में आकर मिटा जाओ


समझ मेरे नहीं आता कैसे

 परखे कौरव और पांडव को 

जाने कैसे देव और दानव को

विकट विपदा आन पड़ी है

 द्रौपदी हर चौराहे हर कदम पर

होकर भयभीत जान पड़ी है


धरा गगन वृक्ष चांद सितारे

सब हमें देख शर्मिंदा है

यही सोच रहे हैं खग परिंदे

 धरती में य मानव कैसे बाशिंदा है

सकल जगत तो तूने ही रचाया

फिर है कृष्णा यह दुर्गुण मुझ में क्यों समाया


हमने माना गीता का  उपदेश

है जग में सर्व परी

पर हमारी मती ही मारी गई

अब वह देवकी कहां से आए

बासुदेव भला यहां कौन बन पाए

हम सब की नौका आपके हाथ हैं

नैया पार हो जाए जो आपका साथ है


ओ मेरे कृष्ण कन्हैया

अब एक बार आ जाओ

हम सब की विकट व्यथा

धारा पर आकर मीटा जाओ

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