लालच की पराकाष्ठा

लता शाक्य

इस जमीं में और आस्मां में ,
इस हवा में और फ़िजा में,
चारो तरफ ही घोला जहर है इस इंसा ने।

अपनी लालच में
पेड़ो को काटा, 
पहाड़ो को तोड़ा,
नदियों के राहों में,
कंक्रीट के दिवारों को खड़ा किया है।
अब ऐसे में •••
ये प्रकृति मानव से बगावत न करती 
तो और क्या करती ?
मानव ने ऐसा करने पर उसे हर तरफ से विवश किया है।

वैश्वीकरण ने •••
समूचे जगत को बेशक मिलाया।
लेकिन इसने भौतिकवादी प्रवृत्ति को 
बहुत है बढ़ाया।
लोगों के लालच ने ,
प्रकृति को बड़ा ही है रुलाया।

रोते बिलखते इस प्रकृति ने 
कहीं बादल है फाड़े
कहीं भूकंप और सुनामी ने मचाया है तबाही,
कहीं बाढ़ है आता, तो कहीं सुखे ने है जान मारी।

हर तरफ ही इस मानव ने जहर ही है घोला
चावल की खेती हो या सब्ज़ी बुआई
नदियों का पानी हो या समुन्दर की गहराई 
ये धरती हो या गगन हो
चारो तरफ ही इस इंसा ने
परमाणु परीक्षण किया है
इस जमीं से उस आसमां तक
चारो तरफ बस धुंआ ही धुंआ है।
इस मानव ने धरती का हर एक कोना,
प्रदुषित किया है। 
और इसी को•••
अपने विकास का नाम दिया।।

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